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विषय | हिंदी |
पाठ | 15. दीनबन्धु ‘निराला’ |
लेखक | आचार्य शिवपूजन सहाय |
वर्ग | 8th |
भाग | किसलय भाग 3 |
Category | Bihar Board Class 8 Solutions |
Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 15
दीनबन्धु ‘निराला’
पाठ से
प्रश्न 1.
निराला को ‘दीनबन्धु’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
“निराला” जी सदैव दीन-दुखियों की सेवा में तत्पर रहा करते थे। गरीबों को स्वजन की तरह स्नेहपूर्वक मदद करना उनको प्रकृति ओर से प्राप्त था। लंगड़े-लूले, अन्धे अपाहिज लोगों को अन्न-वस्त्र देकर संतुष्ट कर देना उनका स्वभाव था।
लोग उन्हें “दीनबन्धु” कहकर पुकारते थे। जो व्यक्ति दीन-दुखियों, पीड़ितों के पास जा-जाकर मदद करता हो, क्या वह मानव भगवान दीनबन्धु के समान “दीनबन्धु” कहलाते का अधिकारी नहीं। उपरोक्त अपने विशिष्ट गुणों के कारण ही उन्हें “दीनबन्धु” कहा गया है।
प्रश्न 2.
निराला सम्बन्धी बातें लोगों को अतिरंजित क्यों जान पड़ती हैं ?
उत्तर:
याचकों के लिए कल्पतरू होना, मित्रों के लिए मुक्त हस्त दोस्त-परस्त होना, मित्रों और अतिथियों के स्वागत सत्कार में अद्वितीय हौसला दिखाने वाले, लंगड़े-लूले, अन्धे, दीन जनों को खोज खोजकर मदद देने वाले निराला सम्बन्धित बातें लोगों को अतिरंजित जान पड़ती है।
क्योंकि उपरोक्त गुणों का होना आसान नहीं । धनी लोग तो बहुत होते हैं लेकिन निराला जिस भाव से मदद दीनों को करते थे वह आम लोगों को अतिरंजित करने वाला ही है।
प्रश्न 3.
निम्न पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(क) “जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय ।
उत्तर:
जो व्यक्ति गरीबों को देखता है, उसको मदद देता है वह व्यक्ति दीनबन्धु भगवान की तरह हो जाता है।
(ख) “पुण्यशील के पास सब विभूतियाँ आप ही आप आती हैं।”
उत्तर:
जो व्यक्ति पुण्यशील होते हैं। जो उदार प्रवृत्ति के लोग होते हैं। उनके पास सब प्रकार की विभूतियाँ (सुख-सम्पदा) स्वयं पहुँच जाती हैं। अर्थात् पुण्यात्मा को भगवान पुण्य करने के लिए सब कुछ दे देते हैं।
(ग) “धन उनके पास अतिथि के समान अल्पावधि तक ही टिकने आता था।”
उत्तर:
“निराला” जी इतने उदार प्रवृत्ति के थे कि-जब-जब धन का आय हुआ तब-तब दौड़-दौड़कर, खोज-खोजकर दीनों की मदद में वे खर्च कर देते थे। इसलिए आज का आया पैसा आज ही खत्म कर देना
व्याकरण
श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द : उच्चारण, मात्र या वर्ण के साधारण बदलाव के बावजूद सुनने में समान परन्तु भिन्न अर्थ देनेवाले शब्द को श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द कहते हैं।
जैसे – दिन-दिन । दीन = गरीब ।
निम्नलिखित श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द युग्मों का अर्थ लिखिए
- समान = बराबर । सम्मान = प्रतिष्ठा ।
- केवल = एक ही। कैवल्य = एकता का भाव।
- बन = बनना । वन = जंगल ।
- भगवान = ईश्वर । भाग्यवान = भाग्यशाली।
- छात्र = विद्यार्थी । छत्र = छाता।
- अन्य = दूसरा । अन्न = भोजन का अन्न ।
- द्रव्य = धन-पैसा । द्रव = तरल पदार्थ ।
- जगत् = संसार । जगत = कुएँ के चारो ओर बना चबूतरा ।
- अवधी = भाषा । अवधि = समय ।
- क्रम = एक के बाद एक। कर्म = कार्य ।
- आदि = इत्यादि । आदी = खाने की एक वस्तु ।
- चिंता = सोचना । चिता = मृतक को जलाने के लिए श्मशान में रखे गये लकड़ी के ढेर जिस पर मृतक को जलाया जाता है।
अनेकार्थक शब्द-कुछ ऐसे शब्द प्रयोग में आते हैं, जिनके अनेक अर्थ होते हैं । प्रसंगानुसार इनके अर्थ भिन्न-भिन्न होते हैं।
उत्तर:
- मन – मेरा मन करता है कि मनभर चावल खरीद लूँ ।
- हर – हर व्यक्ति को कोई हर नहीं सकता है।
- कर – वह अपने कर से पुस्तक वितरक कर दिया।
- अर्थ – आज के अर्थ युग में थोड़ा धन कोई अर्थ नहीं रखता।
- मंगल – मंगल दिन भी मेरा मंगल ही रहेगा।
- पास – तुम्हारे पास वाली लड़की क्या परीक्षा में पास कर गई।
- काल – वह अल्पकाल में ही काल के गाल में चला गया ।
- पर – चिड़िया के पर कट गये, पर वह जीवित था।
इन्हें जानिए
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने निराला के लिए ‘दीनबंधु’ विशेषण का प्रयोग किया है। कुछ अन्य प्रतिष्ठित विभूतियों से संबंधित विशेषण इस प्रकार हैं
विशेषण – प्रतिष्ठि विभूतियाँ
- कथा-सम्राट – मुंशी प्रेमचन्द
- मैथिल कोकिल – विद्यापति
- भारत कोकिला – सरोजनी नायडू
- देशरत्न – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
- लोकनायक – जयप्रकाश नारायण
Conclusion
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