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विषय | हिंदी |
पाठ | 7. ठेस |
लेखक | फणीश्वर नाथ रेनू |
वर्ग | 8th |
भाग | किसलय भाग 3 |
Category | Bihar Board Class 8 Solutions |
Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 7
ठेस
पाठ से
प्रश्न 1.
गाँव के किसान सिरचन को क्या समझते थे?
उत्तर:
गाँव के किसान सिरचन को कामचोर, बेकार का आदमी, धीरे-धीरे काम करने वाला नाप-तौलकर काम करने वाला, मुफ्त में मजदूरी. पाने वाला समझते थे।
प्रश्न 2.
इस कहानी में आये हुए विभिन्न पात्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
इस कहानी के नायक सिरचन के साथ-साथ रेणु जी, रेणु जी की माँ, चाची, मँझली भाभी, मानू दीदी इत्यादि पात्र हैं।
प्रश्न 3.
सिरचन को पान का बीड़ा किसने दिया था?
उत्तर:
मानू दीदी ने।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांशों को कहानी के अनुसार क्रमबद्ध रूप में सजाइए।
उत्तर:
मुझे याद है …………. क्या-क्या लगेगा।
उस बार मेरी सबसे छोटी ………… बिना आएगी मानू तो।
मान फूट-फूट कर …….. देख रहा था।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों के सामने सही (✓) या गलत (✗) का निशान लगाइए।
प्रश्नोत्तर:
सिरचन कामचोर था । (✗)
सिरचन अपने काम में दक्ष था। (✓)
सिरचन बात करने में भी कारीगर था। (✓)
सिरचन वकील था। (✗)
प्रश्न 6.
कहानी के किन-किन प्रसंगों से ऐसा प्रतीत होता है कि सिरचन अपने काम को ज्यादा तरजीह देता था उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कहानी के अनेक प्रसंगों से प्रतीत होता है कि सिरचन अपने काम को ज्यादा तरहीज देता था। की रेणु जी के घर मानू दीदी की विदाई के पूर्व शीतलपाटी और चिक बनाने के लिए सिरचन को बुलाया जाता है । वह अपने काम में तन्मय हो गया। अगर उसकी तन्मयता में विघ्न डाले तो वह गेहूँमन साँप की तरह फुफकार उठता और काम छोड़कर चला जाता । फिर वह काम अधूरा ही रह जाता था।
कहानी प्रसंग में दूसरे दिन जब वह अपने काम में लगा तो उसे खाने-पीने की सुधि ही नहीं रही। उसे चुड़ा-गुड़ खाने को मिलता है। वह केवल चुड़ा फाँक रहा है। गुड़ का ठेला या ही अछुता पड़ा है। चुड़ा चबाते समय भी वह अपने काम में तन्मय है। उसे कुछ सुधि नहीं है कि चुड़ा के साथ गुड़ भी खाना है। इससे स्पष्ट है कि वह भोजन की अपेक्षा अपने काम को ज्यादा तरजीह देता था।
प्रश्न 7.
इस कहानी में कौन-सा पात्र आपको सबसे अच्छा लगा और क्यों ?
उत्तर:
इस कहानी में हमें सबसे अच्छा पात्र सिरचन लगा क्योंकि सिरचन मानवीय गुण से भरा है । वह जिस काम को करता है। प्रेम से करता है। उसकी कारीगरी के कायल दूर-दूर गाँव के लोग थे।
वह स्वाभिमानी और सम्मानप्रिय व्यक्ति है। उसे खाना जो भी मिले वह अपने काम को तरजीह देता था । किसी की जली-कटी बातें सुनकर या अपने कारीगरी के प्रति आरोपों को सुनकर वह काम छोड़ देता । जिस काम को छोड़ देता वह काम अधूरा ही रह जाता।
कहानी के अंत में सिरचन की आत्मीय गुण चरम पर दिखता है जब मानू विदाई होकर स्टेशन पर गाड़ी में सवार है । गाड़ी खुलने के समय में सिरचन दौड़ता-हाँफता गट्ठर मानू दीदी को देते हुए कहता है दीदी यह हमारे तरफ से शीतलपाटी, चिक और कुश की आसानी है।
पाठ से आगे
प्रश्न 1.
आपकी दृष्टि में सिरधन द्वारा चिक एवं शीतलपाटी स्टेशन पर मानू को देना कहाँ तक उचित था।
उत्तर:
सिरचन के द्वारा स्टेशन पर मानू को विदाई के समय शीतलपाटी, चिक आदि उपहार देना ही उचित था। यदि वह घर पर जाता उपहार देने तो कहानी में सिरचन के आत्मीय गुण में कमी आ जाती । फिर उसे तो गाँव वालों से ठेस लग चुका था । एक सफल कारीगर सिरचन अपनी कला का महत्व देते हुए स्वनिर्मित वस्तुओं को उपहार मानू को स्टेशन पर प्रदान करती है जो उपयुक्त समय था।
प्रश्न 2.
काम के बदले थोड़ा-सा अनाज या चंद रुपये देकर क्या किसी मजदूर की मजदूरी का मूल्य चुकाया जा सकता है । इस सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
मजदूरों को मजदूरी के बदले थोड़ा अनाज या ‘चंद रुपये देकर उसके मजदूरी का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता है। क्योंकि किसी मजदूर या कारीगर की कला अमूल्य होती है। फिर अन्न या रुपये से मजदूरी का मूल्य कैसे चुकाया जा सकता है। किसी मजदूर या कारीगर के लिए उसकी मजदूरी का सबसे बड़ा मूल्य है। उसकी कला के प्रति आभार व्यक्त करना, कारीगर का सम्मान करना।
प्रश्न 3.
इस कहानी का अंत किये गये अंत से अलग और क्या हो सकता है? सोचकर लिखिए।
उत्तर:
किसी कहानी का अंत किये गये अंत से अलग हो सकता है। लेकिन “ठेस” शीर्षक कहानी का अंत चरमोत्कर्ष पर जाकर हुआ है क्योंकि सिरचन जो अपनी कारीगरी को पुनः नहीं करने का शपथ लेता है वही सिरचन मानू के घर से विदा हो जाने पर रास्ते में अपना उपहार शीतलपाटी चिक और कुश का आसनी प्रदान कर आत्मीयता का अनोखा परिचय देता है।
जबकि कहानीकार कहानी का अंत वही कर सकता था जहाँ वह शपथ लेता है कि मैं पुन: यह काम नहीं करूंगा। कहानीकार समझ जाता है कि एक कलाकार को “ठेस” लगा है। शीर्षक के आधार पर वही कहानी का अंत किया जा सकता था।
व्याकरण
मुहावरे : ऐसा वाक्यांश, जो सामान्य अर्थ का बोध न कराकर किसी . विलक्षण अर्थ का बोध कराए, मुहावरा कहलाता है । मुहावरे के प्रयोग से भाषा में सरलता, सरसता, चमत्कार और प्रवाह उत्पन्न होते हैं। जैसे-आँख का तारा (बहुत प्यारा) । नमन अपने माता-पिता के आँखों का तारा है।
लोकोक्ति : लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है तो लोकोक्ति हो जाती है। जैसे एक पंथ दो काज (एक काम से दूसरा काम हो जाना)पटना जाने से एक पंथ दो काज होंगे। कवि
सम्मेलन में कविता पाठ भी करेंगे और साथ ही जैविक उद्यान भी देखेंगे। आइए इसके साथ ही कुछ ऐसी बातों को भी जानें, जिससे मुहावरे और लोकोक्तियों की समानताओं और असमानताओं का पता भी चले।
मुहावरों और लोकोक्तियों में पर्यायवाची शब्द नहीं रखे जा सकते । यही कारण है कि इनका अनुवाद संभव नहीं।
लोकोक्ति स्वतंत्र वाक्य होते हैं, जबकि मुहावरे वाक्यांश होते हैं।
प्रश्न 1.
इन मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग करते हुए अर्थ स्पष्ट कीजिए
प्रश्नोत्तर:
- कान मत देना – उसके बातों पर कान मत देना।
- दम मारना – बीमार व्यक्ति दम मार-मारकर चलता है।
- मुँह में लगाम न होना – श्याम के मुँह में लगाम नहीं है।
- सिर चढ़ाना – मदन अपने पत्नी को सिर चढ़ा लिया है।
गतिविधि
प्रश्न 1.
स्टेशन पर, सिरचन का पहुँचना एवं वहाँ मानू को सामग्री देने के अंश को पढ़ने के बाद जो चित्र आपके मस्तिष्क में उभरते उसे चित्र बनाकर वर्ग कक्ष में प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2.
स्थानीय स्तर पर शीतलपाटी, चिक, आसनी की तरह कोई अन्य वस्तु प्रचलित हो तो उसे बनाकर वर्गकक्ष में दर्शाइए। ।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
Conclusion
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