Bihar Board Class 8 History Solutions Chapter 3: ग्रामीण ज़ीवन और समाज

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विषयसामाजिक विज्ञान
पाठ3. ग्रामीण ज़ीवन और समाज
वर्ग8th
भागइतिहास (अतीत से वर्तमान)
CategoryBihar Board Class 8 Solutions

Bihar Board Class 8 History Solutions Chapter 3

ग्रामीण ज़ीवन और समाज

पाठ्गत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.

कल्पना करें लगान वसूली का अधिकार मिलने से गाँवों में क्या परिवर्तन आया होगा, आपकी नजर में अब भूमि का मालिक कौन हो गया ?
उत्तर-
अंग्रेजों को लगान वसूली का अधिकार मिलने से गाँवों में असंतोष उत्पन्न हो गया। किसानों की दशा खराब होती चली गयी । भूमि का मालिक अब राजा से जमींदार हो गये थे।

प्रश्न 2.

गतिविधि-रिकार्डो के मत के अनुसार बड़े एवं सम्पन्न किसानों की . आय पर आज कर लगाना क्या उचित होगा? सोचें।
उत्तर-
हाँ, ऐसा करना उचित होगा । बड़े एवं सम्पन्न किसानों की आय पर कर लगाना उचित ही होगा।

प्रश्न 3.

गतिविधि-महालवारी व्यवस्था में पूरे गाँव से एक परिवार द्वारा लगान वसूलने में किस प्रकार की कठिनाई आती होगी ? विचार कर अपना मत दें।
उत्तर-
एक परिवार द्वारा पूरे गाँव से लगान वसूल करने में बहुत समस्या आती होगी। प्रत्येक किसान की उपज का हिसाब-किताब रखना व उनकी बचत का अनुमान लगाना किसी एक परिवार के लिए संभव नहीं हो सकता है। अत: वे किसी प्रकार इस काम को निपटा देते होंगे।

प्रश्न 4.

नकदी फसल किसे कहा जाता था?
उत्तर-
नकदी फसल ऐसा कृषि उत्पाद होता है जिसे खेतों से सीधे व्यापारियों द्वारा खरीद लिया जाता था । जैसे – गन्ना, नील, तम्बाकू, अफीम । इत्यादि।

अभ्यास-प्रश्न

आइये फिर से याद करें-

प्रश्न 1.

सही विकल्प को चुनें

प्रश्न (i)

बिहार में अंग्रेजों के समय किस तरह की भूमि व्यवस्था अपनाई गई?
(क) स्थायी बंदोबस्त
(ख) रैयतवारी व्यवस्था
(ग) महालवारी व्यवस्था
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) स्थायी बंदोबस्त

प्रश्न (ii)

अंग्रेजों के आने के पहले भूमिका मालिक कौन होता था ?
(क) जमींदार
(ख) व्यापारी
(ग) किसान
(घ) राजा
उत्तर-
(घ) राजा

प्रश्न (iii)

रैयतवारी व्यवस्था में जमीन का मालिक किसे माना गया ?
(क) किसान
(ख) जमींदार
(ग) गाँव
(घ) व्यापारी
उत्तर-
(क) किसान

प्रश्न (iv)

अंग्रेजी शासन द्वारा भारत में अपनाई गई भूमि व्यवस्थाओं का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
(क) अपनी आय बढाना
(ख) भारतीय गाँवों पर अपने शासन को मजबूत करना
(ग) व्यापारिक लाभ प्राप्त करना
(घ) किसानों का समर्थन प्राप्त करना
उत्तर-
(iv) (क) अपनी आय बढ़ाना।

प्रश्न 2.

निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ-

महालवारी – (क) 1793
नील दर्पण – (ख) बिहार
नकदी फसल – (ग) दीनबंधु मित्र
स्थायी भूमि-व्यवस्था – (घ) पंजाब

उत्तर-

महालवारी – (घ) पंजाब ।
नील दर्पण – (ग) दीनबंधु मित्र
नकदी फसल – (ख) बिहार
स्थायी भूमि व्यवस्था – (क) 1793

आइए विचार करें

प्रश्न (i)

अंग्रेजी शासन के पहले भारतीय भूमि व्यवस्था एवं लगान प्रणाली के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
अंग्रेजी शासन के पहले राज्य की सूची जमीन का मालिक उस राज्य का राजा होता था। उस समय जमींदारों का एक प्रभावशाली वर्ग भी गाँवों में रहता था जिनके पास राजा द्वारा दी गई काफी जमीन होती थी। वे ही गाँवों से लगान (कृषि उपज पर राजा द्वारा किसानों से लिया जाने वाला कर) की वसूली करते थे। इसके एवज में या फिर राज्य के अन्य कामों को देखने के एवज में इन्हें जमीनें मिलती थीं। राजा या उसके अधिकारी गाँवों में ज्यादा दखल नहीं देते थे । बस, जमींदारों के मार्फत (द्वारा) निर्धारित लगान वसूल करते थे।

प्रश्न (ii)

स्थायी बन्दोबस्त की विशेषताओं को बताएँ।
उत्तर-
1789 के आस-पास कंपनी सरकार ने, जमींदारों के साथ एक करार किया। इसके तहत जमींदारों के द्वारा कंपनी को दिया जाने वाला लगान 10 वर्षों के लिए तय कर दिया गया। यह राशि जमींदारों द्वारा किसानों से वसूले गए लगान का 9/10 भग तय कर दिया गया।

आगे चलकर सन् 1793 में इसी राशि को हमेशा के लिए निश्चित मान – लिया गया। इस राशि में भविष्य में कोई बढ़ोतरी नहीं होनी थी । इस व्यवस्था – को ‘स्थायी बंदोबस्त’ नाम दिया गया। – इस व्यवस्था के तहत, एक आकलन के अनुसार यदि किसानों की उपज

को 100 माना जाए तो अंग्रेजी सरकार को उसमें से लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त होता था। जमींदार और उसके कारिंदे अपने लिए करीब 15 प्रतिशत हिस्सा वसूलते थे और शेष 40 प्रतिशत किसानों के पास बचता था। इस राशि में कोई परिवर्तन नहीं होना था। पर, जमींदारों को लगान की त्य राशि नियमित तिथि को सुरज डूबने के पहले सरकारी कार्यालय में जमा करना अनिवार्य था । ऐसा नहीं करने पर उनकी जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी। सरकार को इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि अकाल या बाढ़ के कारण फसल नष्ट हो गयी है या पैदावार कम हुई है। जमींदारों को हर हाल में तय राशि नियत तिथि को जमा कराना ही था।

प्रश्न (iii)

अंग्रेजी सरकार द्वारा बार-बार भूमि राजस्व व्यवस्था में किये जाने वाले परिवर्तनों को आप किस रूप में देखते हैं ? अपने शब्दों में बताएँ।
उत्तर-
अंग्रेजी सरकार ने गाँवों से ज्यादा से ज्यादा धन अपने साम्राज्य विस्तार के लिए होने वाले खर्चों के लिए प्राप्त करना चाहा। इसके लिए उसने पहले स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था की । इसके तहत जमींदारों द्वारा लगान के रूप में जमा की जाने वाली राशि हमेशा के लिए तय कर दी गयी। फिर उन्हें लगा कि यह उचित नहीं था। चूँकि साल दर साल उनके खर्चे तो बढ़ते ही जाएँगे और लगान के रूप में आने वाली आय वही रहेगी। अतः उन्होंने फिर महालवारी व्यवस्था की जिसके तहत जमींदारों के बदले गाँव के बड़े किसान या परिवार को गाँव का लगान वसूलने का अधिकार दे दिया गया इसके तहत अंग्रेजों को 50 प्रतिशत लगान मिलना था और इसे मात्र 30 वर्षों के लिए लागू किया गया। जबकि रैयतवारी व्यवस्था के तहत कंपनी सरकार ने सीधा किसानों से संपर्क किया । किसानों को जमीन का मालिक बना दिया गया ।

उनसे सीधे 50 प्रतिशत लगान जमा करने को कहा गया । पर, इस व्यवस्था ‘को स्थायी नहीं बनाया गया। प्रत्येक 30 वर्ष बाद राशि में बदलाव किया जाना तय किया गया । भूमि राजस्व व्यवस्था में अंग्रेजी सरकार ने बार-बार परिवर्तन अधिक से अधिक लाभ कमाने के दृष्टिकोण से किया था।

प्रश्न (iv)

अंग्रेजों की भूमि राजस्व व्यवस्था आज की व्यवस्था से कैसे अलग थी, संक्षेप में बताएँ।
उत्तर-
आज, जहां सरकार किसानों से काफी कम राशि भूमि राजस्व के रूप में लेती है और कई सरकारी कर्मचारी व अधिकारी इस काम के लिए लगे होते हैं वहीं अंग्रेजी सरकार भूमि राजस्व के रूप में तब, किसानों से उनके लाभ का लगभग आधा हिस्सा हडप लेती थी। भूमि राजस्व की वसूली का काम जमींदार और उसके कारिंदे करते थे, कहीं यह काम कोई बड़ा किसान या परिवार करता था और कहीं कंपनी के लोग स्वयं यह काम करते थे। पर, उनका मकसद अधिक से अधिक शोषण करना होता था।

प्रश्न (v)

नई राजस्व नीति का भारतीय समाज पर क्या असर हुआ?
उत्तर-
नई राजस्व नीति के कारण आधे पुराने जमींदारों की जमींदारी उनके हाथ से चली गई क्योंकि उन्होंने तय समय पर लगान जमा नहीं किया था। दरअसल उनके लिए किसानों से लगान के लिए ज्यादा जोर-जबर्दस्ती करना संभव नहीं था। किसानों के साथ उनके पुराने संबंध थे। नई राजस्व व्यवस्था में जमीन का मालिक किसान या जमींदारों को बना दिया गया ।

इससे लगान समय पर जमा करने के लिए इसे बेचने या बंधक रखने का चलन शुरू हो गया। इससे गाँवों में महाजन के रूप में एक प्रभावी समूह आ गया । ये महाजन जमीन के एवज में धन दिया करते थे। किसान और जमींदार दोनों इनसे कर्ज लेते थे । अंग्रेज सरकार को केवल लगान से मतलब थी । इस नई राजस्व नीति का भारतीय समाज पर बुरा असर पड़ा । शोषण बड़ा, भारतीय किसानों की दरिद्रता बढ़ी और भारतीय समाज में असंतोष बढ़ता गया जिसके । परिणामस्वरूप जगह-जगह पर उपद्रव की स्थिति उत्पन्न हो गयी।

प्रश्न (vi)

नील की खेती की प्रमुख समस्याओं की चर्चा करें।
उत्तर-
भारतीय किसानों के दृष्टिकोण से नील की खेती उनके लिए फायदेमंद नहीं थी। मजबूरन, उन्हें अपनी जमीन के एक बेहतर हिस्से पर इसकी खेती करनी पड़ती थी। अंग्रेज अधिकारी इसके लिए उन्हें बाध्य करते – थे। किसान तो हमेशा खाद्य फसल ही उपजाना चाहते थे। इससे उन्हें उस साल के लिए खाने का अनाज मिलता था और बुरे दिनों के लिए कुछ अनाज वे बचाकर भी रख लेते थे ।

नील की खेती धान के मौसम में ही की जाती थी इससे धान के फसल में देर हो जाती थी। साथ ही, जिस खेत में नील की खेती होती थी उसमें फसल कटने के बाद उस साल कोई और फसल नहीं उगायी जा सकती थी। इसका असर होता कि किसानों के पास अनाज की कमी हो जाती थी। जब सूखा या बाढ़ के कारण फसलों का उत्पादन कम होता था तो किसानों के पास पहले का रखा अनाज नहीं होता था। ऐसे में या तो महाजनों से कर्ज लेते थे या भूखे रहते थे।

आइए करके देखें-

प्रश्न (i)

अंग्रेजी राज के समय उत्पादित फसलों में से कौन-कौन आज भी उत्पादित होती है, वर्ग में सहपाठियों से चर्चा करें।
उत्तर-

चाय
आलू
धान
गेहूँ
दाल
अफीम आदि।

प्रश्न (ii)

खेती करने के तौर-तरीकों में पहले की अपेक्षा आज किस तरह का बदलाव आया है ? बुजुर्गों से पता करें।
उत्तर-
पहले खेती हल-बैल की सहायता से होती थी जबकि आज ट्रैक्टर से भी खेत जोतते हैं और अधिक फसल उत्पादन के लिए विभिन्न खादों की मदद ली जाती है।

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