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विषय | हिंदी |
पाठ | 3: ग्रीम-गीत का मर्म |
लेखक | लक्ष्मीनारायण सुधांशु |
वर्ग | 9th |
भाग | गोधलि भाग-1, गद्य |
Category | Bihar Board Class 9 Solutions |
Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 3
ग्रीम-गीत का मर्म
प्रश्न 1.
‘ग्राम-गीत का मर्म’ निबंध में व्यक्त सुधांशुजी के विचारों को सार रूप में प्रस्तुत करें।
उत्तर-
प्रश्न 2.
जीवन का आरंभ जैसे शैशव है, वैसे ही कला-गीत का ग्राम-गीत है। लेखक के इस कथन का क्या आशय है।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ लक्ष्मी नारायण सुधांशु द्वारा लिखित ‘ग्राम-गीत का मर्म’ – पाठ से उद्धृत हैं। इसमें लेखक ने कला-गीत .और ग्राम-गीत का संबंध जीवन से उद्घाटित किया है।
सुधांशु जी ने बताया है कि ग्राम-गीत संभवतः वह जातीय आशु कवित्व है, जो कर्म या क्रीड़ा के तल पर रचा गया है। गीत का उपयोग जीवन के महत्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी है। इस तथ्य के माध्यम से सुधांशुजी ने दार्शनिक विचारों को हमारे सामने रखकर सत्य को उजागर किया है।
प्रश्न 3.
गार्हस्थ्य कर्म विधान में स्त्रियाँ किस तरह के गीत गाती हैं?
उत्तर-
प्रश्न 4.
मानव जीवन में ग्राम-गीतों का क्या महत्व है?
उत्तर-
मानव जीवन में ग्राम-गीतों का महत्व मुख्य रूप से पारिवारिक जीवन से है। ग्राम-गीतों का महत्व मानव जीवन में पुरुष और स्त्रियों में अलग-अलग है। पुरुष और स्त्रियों के गीतों के तुलनात्मक अध्ययन में ग्राम-गीतों की प्रकृति स्त्रैण ही रही. परुषत्व का आक्रमण उन पर नहीं किया जा सका। स्त्रियों ने जहाँ कोमल भावों की अभिव्यक्ति की वहाँ पुरुषों ने अवश्य ही अपने संस्कारवश प्रेम को प्राप्त करने के लिए युद्ध-घोषणा की। इस प्रकार मनुष्य की दो सनातन प्रवृत्तियों-प्रेम और युद्ध का वर्णन भी ग्राम-गीतों में मिलता है। तत्वतः ग्राम-गीत हृदय की वाणी है, मस्तिष्क की ध्वनि है। इसलिए मानव जीवन में ग्राम-गीतों का बहुत ही व्यापक महत्व है।
प्रश्न 5.
“ग्राम-गीत हृदय की वाणी है, मस्तिष्क की ध्वनि नहीं।” आशय । स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ लक्ष्मी नारायण सुधांशु लिखित “ग्राम-गीत का मर्म” पाठ से उद्धृत है। इसमें लेखक ने ग्रामगीत के उद्गम स्थान की खोज बड़े ही मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक ढंग से की है।
लेखक का कहना है कि ग्राम-गीत हृदय की वाणी है। जैसी परिस्थिति आई इसकी उद्भावना व्यक्तिगत जीवन के उल्लास-विषाद को लेकर हुई। मानव जातीयता में उसकी सारी वैयक्तिक विशेषता अंतर्निहित हो गई। वह व्यक्ति को साथ लेकर भी उसको, प्रधान न रख, उपलक्ष्य बनाकर भावों की स्वाभाविक मार्मिकता के साथ अग्रसर हुए।
प्रश्न 6.
ग्राम-गीत की प्रकृति क्या है?
उत्तर-
ग्राम-गीत में रचना की जो प्रकृति स्त्रैण थी भी वह कला-गीत में आकर पौरुषपूर्ण हो गई। लेकिन मुख्य रूप से ग्राम-गीत की पद्धति स्त्रैण ही रही।
प्रश्न 7.
कला-गीत और ग्राम-गीत में क्या अंतर है?
उत्तर-
ग्राम-गीत की रचना में जिस पद्धति और संकल्प का विधान था, कला-गीत में उसकी उपेक्षा करना समुचित न माना गया। अत्यधिक संस्कृत तथा परिष्कत होने के बाद भी कला-गीत अपने मल ग्राम-गीत से कला-गीत के परि
परिवर्तन में एक बात उल्लेखनीय है कि ग्राम-गीत में रचना की जो प्रकृति स्त्रैण थी, वह कला-गीत में आकर पौरुषपूर्ण हो गई। स्त्री और पुरुष रचयिता के दृष्टिकोण में जो सूक्ष्म और स्वाभाविक भेद हो सकता है, वह ग्राम-गीत और कला-गीत की अंतप्रकृति में बना रहा ग्राम-गीत में स्त्री की ओर से पुरुष के प्रति प्रेम की जो आसन्नता थी, वह कला-गीत में बहुधा पुरुष के उपक्रम के रूप में परिवर्तित होने लगी।
प्रश्न 8.
‘ग्राम-गीत का ही विकास कला-गीत में हुआ है।’ पठित निबंध को ध्यान में रखते हुए उसकी विकास-प्रक्रिया पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
कला-गीत के अंतर्गत मुक्तक और प्रबंध काव्य दोनों का समावेश है। इनके इतिहास का अनुसंधान करने पर ग्राम-गीतों पर ही आकर ठहरना पड़ता है। इसमें संन्देह नहीं कि ग्राम-गीतों से ही काल्पनिक तथा वैचित्र्यपूर्ण कविताओं का विकास हुआ है। यही ग्राम-गीत क्रमशः सभ्य जीवन के अनुक्रम से कला-गीत के रूप में विकसित हो गया है, जिसका संस्कार अब तक वर्तमान है। ग्राम-गीत भी प्रथमतः व्यक्तिगत उच्छवास और वेदना को लेकर उद्गीत किया गया; किन्तु इन भावनाओं ने समष्टि का इतना प्रतिनिधित्व किया कि उनकी सारी वैयक्तिक सत्ता समाविष्ट में ही तिरोहित हो गई और इस प्रकार उसे लोक-गीत की संज्ञा प्राप्त हुई। ग्राम-गीत को कला-गीत के रूप में आते-आते कुछ समय तो लगा ही, पर उसमें सबसे मुख्य बात यह रही कि कला-गीत अपनी रूढ़ियाँ बनाकर चले।।
प्रश्न 9.
ग्राम-गीतों में प्रेम-दशा की क्या स्थिति है? पठित निबंध के आधार पर उदाहरण देते हुए समझाइए।
उत्तर-
प्रेम-दशा जितनी व्यापकत्व विधायनी होती है, जीवन में उतनी और कोई स्थिति नहीं। प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है वह क्रोध, शोक, उत्साह, विस्मय, जुगप्सा में नहीं।
प्रश्न 10.
‘प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है, वह क्रोध, शोक, विस्मय, उत्साह, जुगुप्सा आदि में नहीं।” आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ लक्ष्मी नारायण सुधांशु द्वारा लिखित ‘ग्राम-गीत का मर्म’ शीर्षक से उद्धृत की गई हैं। इसमें लेखक ने प्रेम की क्या-क्या दशा होती है उसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण बड़े ही मार्मिक ढंग से किया है।
लेखक का कहना है कि विरहाकुल पुरुष पशु, पक्षी, लता-द्रुम सबसे अपनी वियुक्त प्रिय का पता पूछ सकता है, किन्तु क्रुद्ध, मनुष्य अपनी शत्रु का पता प्रकृति से नहीं पूछता पाया जाता। यही कारण है कि प्रेमिका या प्रेमी प्रकृति के साथ अपने जीवन का जैसा साहचर्य मानते हैं, वैसा और कोई नहीं। मनोविज्ञान का यह तथ्य काव्य में एक प्रणाली के रूप में समाविष्ट कर लिया गया है। प्रिय के अस्तित्व की सृष्टि-व्यापिनी भावना से जीवन और जगत की कोई वस्तु अलग नहीं कर सकती। यही लेखक का आशय है जो दार्शनिक आधार पर सत्य साबित होता है।
प्रश्न 11.
ग्राम-गीतों में मानव-जीवन के किन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं?
उत्तर-
ग्राम-गीतों में मानव जीवन के उन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं जिनमें मनुष्य साधारणतः अपनी लालसा, वासना, प्रेम, घृणा, उल्लास, विषाद को समाज की मान्य धारणाओं से ऊपर नहीं उठा-सका है और अपनी हृदयगत भावनाओं को प्रकट करने में उसने कृत्रिम शिष्टाचार का प्रतिबंध भी नहीं माना है।
प्रश्न 12.
गीत का उपयोग जीवन के महत्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी है। निबंधकार ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर-
मनोरंजन के विविध रूप और विधियाँ हैं। स्त्री प्रकृति में गार्हस्थ्य कर्म-विधान की जो स्वाभाविक प्रेरणा है, उससे गीतों की रचना का अटूट संबंध है। चक्की पिसते, समय, धान कूटते समय, चर्खा कातते समय अपने शरीरश्रम को हल्का करने के लिए स्त्रियाँ गीत गाती हैं जिसमें उसका अभिप्रायः यह रहता है कि परिश्रम के कारण जो थकावट आई है उससे ध्यान हटाकर अन्यथा मनोरंजन में चित्त संलग्न किया जा सके।
प्रश्न 14.
किसी विशिष्ट वर्ग के नायक को लेकर जो काव्य रचना की जाती थी। किन स्वाभाविक गुणों के कारण साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्व की प्रतिष्ठा बनती थी?
उत्तर-
राजा-रानी, राजकुमार या राजकुमारी या ऐसे ही समाज के किसी विशिष्ट वर्ग के नायक को लेकर काव्य रचना की जो प्रणाली बहुत प्राचीन काल से चली आ रही थी और जिसका संस्कृत साहित्य में विशेष महत्व था। उसका प्रधान कारण यह था कि वैसे विशिष्ट व्यक्तियों के लिए साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्व की प्रतिष्ठा बनी हुई थी। उनमें धीरोदात्त, दक्षता, तेजस्विता, रूढ़वंशता, वाग्मिता आदि गुण स्वभाविक माने जाते थे।
प्रश्न 15.
ग्राम-गीत की कौन-सी प्रवृत्ति अब काव्य गीत में चलने लगी है?
उत्तर-
बच्चे अब भी राजा, रानी, राक्षस, भूत, जानवर आदि की कहानियाँ सुनने को ज्यादा उत्कठित रहते हैं। साधारण तथा प्रत्यक्ष जीवन में जो घटनाएँ होती रहती हैं, उनके अतिरिक्त जो जीवन से दूर तथा अप्रत्यक्ष है, उनके संबंध में कुछ जानने की लालसा तथा उत्कंठा अधिक बनी रहती है। मानव जीवन का पारस्परिक संबंध सूत्र कुछ ऐसा विचित्र है कि जिस बात को हम एक काल और एक देश में बुरा समझते हैं उसी बात को दूसरे काल और दूसरे देश अच्छा मान लेते हैं। यही बात ग्राम-गीत की प्रकृति से काव्यगीत की है।
प्रश्न 16.
ग्राम-गीत के मेरूदण्ड क्या हैं?
उत्तर-
हमारी दरिद्रता के बीच में भी संपत्तिशालीनता का यह रूप हमारे भाव को उद्दीप्त करने के लिए ही उपस्थित किया गया है। ऐसे वर्णन कला-गीत में चाहे विशेष महत्व प्राप्त न करें, किन्तु ग्राम-गीत के वे मेरुदण्ड समझे जाते हैं।
प्रश्न 17.
‘प्रेम दशा जितनी व्यापक विधायिनी होती है, जीवन में उतनी और कोई स्थिति नहीं।’ प्रेम के इस स्वरूप पर विचार करें तथा आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ लक्ष्मी नारायण सुधांशु द्वारा लिखित ‘ग्राम-गीत का मर्म’ शीर्षक से उद्धृत की गई हैं। इसमें लेखक ने प्रेम-दशा का जो रूप होता है उसका बड़ा ही सुन्दर रूप प्रस्तुत किया है।
लेखक ने बताया है कि प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है वह क्रोध, शोक, उत्साह, विस्मय, जुगुप्सा आदि में नहीं। विरहाकुल. पुरुष पशु, पक्षी, लता, द्रुम सबसे अपनी वियुक्त प्रिया का पता पूछ सकता है किन्तु क्रुध मनुष्य अपने शत्रु का पता प्रकृति से नहीं पूछ सकता। प्रेम के इस स्वरूप पर लेखक ने दार्शनिकता की छाप छोड़ी है।
प्रश्न 18.
‘कला-गीतों में पशु-पक्षी, लता-दुम आदि से जो प्रश्न पूछे गए हैं, उनके उत्तर में, वे प्राय मौन रहे हैं। विरही यक्ष मेघदूत भी मौन ही रहा है। लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं? यदि हैं तो अपने विचार दें।
उत्तर-
हाँ. मैं लेखक के मत से सहमत हूँ क्योंकि कला-गीतों में कलात्मकता की भावना ऐसी है कि बहुत से प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं लेकिन ग्राम-गीत मौन नहीं रहता। क्योंकि ग्राम-गीतों में ऐसे वर्णन बहुत हैं जहाँ नायिका अपने प्रेमी की खोज में बाघ, भालू, साँप आदि से उसका पता पूछती चलती है। आदिकवि वाल्मीकि ने विरह-विह्वल राम के मुख से सीता की खोज के लिए न जाने कितने पशु-पक्षी, लता-द्रुम आदि से पता पुछवाया है। इसके अतिरिक्त सीता के अनुसंधान तथा उनके पास राम का प्रणय संदेश पहुँचाने के लिए, जो हनुमान को दूत बनाकर तैयार किया, वह काव्य में इस परिपाटी का मार्ग-दर्शक ही हो गया।
प्रश्न 19.
‘ग्राम-गीत का मर्म’ निबंध के इस शीर्षक में लेखक ने ‘मर्म’ ‘ शब्द का प्रयोग क्यों किया है? विचार कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने ग्राम-गीत के मर्म का उद्घाटन करते हुए। काव्य और जीवन में उसके महत्व का निरूपण किया है। ग्राम-गीत का उद्भव और उसकी प्रवृत्ति का अनुसंधान करते हुए उन्होंने प्रतिपादित किया है कि जीवन की शुद्धता और गांवों की सरलता का जितना मार्मिक वर्णन ग्राम-गीतों में मिलता है उनका परवर्ती कला-गीतों में नहीं।
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