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विषय | हिंदी |
पाठ | कड़बक |
कवि | मंझन |
वर्ग | 9th |
भाग | गोधलि भाग-1, पद |
Category | Bihar Board Class 9 Solutions |
Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद Chapter 2
कड़बक
प्रश्न 1.
कवि ने प्रेम को संसार में अँगूठी के नगीने के समान अमूल्य माना है। इस पंक्ति को ध्यान में रखते हुए कवि के अनुसार प्रेम स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों में महाकवि मंझन ने प्रेम के सही स्वरूप को व्याख्या करते हुए उसकी तुलना अंगूठी के नग से की है। जिस प्रकार बिना नग के अंगूठी का कोई महत्व नहीं होता ठीक उसी प्रकार इस नश्वर संसार में बिना प्रेम के जीवन निस्सार है, निरर्थक है। प्रेम अनमोल वस्तु है। प्रेम उसी मनुष्य के पास मिल सकता है जो अवतारी पुरुष हो, असाधारण पुरुष हो। सामान्य पुरुष के पास प्रेम मिल ही नहीं सकता। प्रेम अलौकिक चीज है जिसके लिए सर्वस्व त्याग की भावना रखनी पड़ती है।
प्रश्न 2.
कवि ने सच्चे प्रेम की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर-
कवि की दृष्टि में प्रेम का महत्व अनमोल है। प्रेम की प्राप्ति के लिए पहले स्वयं को मारना पड़ता है। कहने का भाव यह है कि सांसारिक मोह-माया, तृष्णाओं, वासनाओं से दूर रहना पड़ता है। इस सृष्टि का सृजन स्वयं ब्रह्मा ने प्रेम के वशीभूत होकर ही की थी।
कवि के कथनानुसार कोई भाग्यशाली व्यक्ति ही प्रेम को प्राप्त कर सकता है। प्रेम बहुत ऊँचा शब्द है और शाश्वत है। इसीलिए कवि ने साफ-साफ लिखा है कि प्रेम के पंथ में जो अपने को बलि चढ़ाए वही राजा है, वही महान है और तब ही प्रेम का भी महत्व है।
प्रश्न 3.
‘पेम गहा बिधि परगट आवा’ से कवि ने मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है?
उत्तर-
उपरोक्त पंक्तियों में महाकवि मंझन ने प्रेम की अमरता और उसकी महत्ता का वर्णन करते हुए मनुष्य के जीवन में व्याप्त अनेक वासनाओं, तृष्णाओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। इस संसार की सृष्टि खुद ब्रह्मा ने प्रेम के कारण ही की। यह संसार रहेगा तभी प्रेम रहेगा और प्रेम रहेगा तभी ईश्वर की महत्ता भी रहेगी। इन पंक्तियों में कहना है कि ईश्वर के द्वारा कवि का प्रेम के कारण ही संसार का निर्माण किया जिसमें मनुष्य की सृष्टि की। मनुष्य की अनेक तामसिक प्रवृत्तियाँ होती हैं जो उसके मोक्ष के मार्ग को अवरुद्ध रखती है। इसीलिए इस नश्वर संसार में मनुष्य के लिए अमरत्व आवश्यक है, लेकिन यह तभी संभव है जब वह इसके लिए अपने को भौतिकता से ऊपर उठाए और सत्यपोषण में स्वयं को न्योछावर कर दे। उसे सच्चे प्रेम की प्राप्ति स्वतः हो जाएगी।
प्रश्न 4.
आज मनुष्य ईश्वर को इधर-उधर खोजता-फिरता है लेकिन कवि मंझन का मानना है कि जिस मनुष्य ने भी प्रेम को गहराई से जान लिया स्वयं ईश्वर वहाँ प्रकट हो जाते हैं। यह भाव किन पंक्तियों से व्यंजित होता है।
उत्तर-
“प्रेम के आगि सही जेइ आंचा।
सो जग जनमि काल सेउं बांचा। मंझन के उपरोक्त पंक्तियों में यह बात साफ-साफ झलकती है कि जो प्रेम की ज्वाला यानि आँच को बर्दाश्त कर लेता है, वही काल के आगे टिक पाता है। काल उसे मार नहीं सकता। जिसने प्रेम की शरण ले ली उसको कोई नहीं मार सकता। जो सांसारिक वासनाओं एवं तृष्णाओं से युक्त होकर जीता है वही अमरत्व यानि ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 5.
कवि की मान्यता है कि प्रेम के पथ पर जिसने भी अपना सिर दे दिया वह राजा हो गया। यहाँ ‘सिर’ देना का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
महाकवि मंझन ने अपने पद में
“सबद ऊँच चारिहुं जुग बाजा।
पेम पंथ सिर देई सो राजा।” सिर देने का प्रयोग किया है। उसका भाव यह है कि प्रेम के पंथ में जो स्वयं को बलि चढ़ा दे, वही राजा है, वही महान है। ‘सिर देना’ का अर्थ हुआ स्वयं को बलिवेदी पर चढ़ा देना यानि सर्वस्व त्याग की भावना। अलौकिक प्रेम बलिदान खोजता है। त्याग खोजता है। वह तृष्णाओं, वासनाओं की चकाचौंध में नहीं रहनाचाहता। ‘प्रेम’ यहाँ अलौकिक भाव तत्व से जुड़ा है। ईश्वर भक्ति में भी चाहे प्रेम, प्राप्ति के लिए एकनिष्ठता आवश्यक है। अपने सिर को बलि दे देने पर ही सच्चे प्रेम की प्राप्ति संभव है।
प्रश्न 6.
प्रेम से व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? पठित पदों के आधार पर तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
इस नश्वर संसार में प्रेम अँगूठी के नग के समान है। जिस प्रकार अंगूठी की महत्ता नग के कारण बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी प्रेम बिना निरर्थक है।
प्रेम का व्यक्ति के जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इसके बिना यह जीवन निरर्थक और निस्सार लगता है। वह व्यक्ति के जीवन की ज्योति है, आभा है जिसकी चमक से वह इस दुनिया में विशिष्ट स्थान पाता है। प्रेम के अलौकिक गुणों से संपन्न मनुष्य अवतारी पुरुष कहलाता है। वह सामान्य कोटि के मनुष्य से अलग दिखाई पड़ता है। उसके व्यक्तित्व में विराटता और गंभीरता स्पष्ट झलकती है।
भाग्यशाली व्यक्ति के ही भाग्य में प्रेम सुहाग सदृश काम करता है। चारों युगों में प्रेम का महत्व बरकरार रहता है अतः उसके प्रभाव से व्यक्ति अमरता को प्राप्त करता है। वह इस संसार ही नहीं अलौकिक जगत में भी काल पर विजय प्राप्त कर लेता है। वह कालजयी महान आत्मा के रूप में पूजित होता है।
प्रेम के वशीभूत तो खुद ईश्वर रहते आए हैं। इसी प्रेम के कारण तो उन्होंने संसार की सृष्टि की। अतः इस लौकिक जगत में भी और अलौकिक जगत दोनों में प्रेम के प्रभाव से मनुष्य का जीवन देदीप्यमान, अमरत्व एवं कालजयी रूप को प्राप्त कर लेता है।
सप्रसंग व्याख्या
प्रश्न 7.
“पेम हाट चहुं दिसि है पसरीगै बनिजौ जो लोइ।
लाहा और फल गाहक जनि डहकावे कोइ॥
उत्तर-
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ महाकवि मंझन के प्रथम पद से उद्धृत की गयी हैं। ये पद हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित है। इस पंक्तियों का प्रसंग प्रेम के हाट और खरीददार एवं विक्रेता के संबंधों से जुड़ा हुआ है।
प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा कवि मंझन कहना चाहते हैं कि अरे प्रेम का बाजार तो संसार भर में फैला हुआ है जिसका मन करे वह इस प्रेम के सौदे की खरीद-बिक्री कर ले।
इस सौदागिरी में किसी को घाटा नहीं है। न बेचने वाले को न खरीदने वाले को। इन पंक्तियों में इस नश्वर संसार में प्रेम को महत्ता का कवि ने वर्णन किया है।
कवि का कहना है कि प्रेम अनमोल और बहुमूल्य वस्तु है। वह अंगूठी में नग की तरह है। अतः इस संसार रूपी हाट में प्रेम के खरीदने-बेचनेवालों की कवि सलाह देता है कि समय रहते प्रेम की खरीददारी कर लो। समय बीत जाने पर पछताना न पड़े क्योंकि प्रेम की खरीद-बिक्री में किसी को घाटा नहीं होने वाला है। इन पंक्तियों में आध्यात्मिक प्रेम की चर्चा करते हुए इस भौतिक जगत से मुक्ति और अमरत्व प्राप्ति के लिए प्रेम की खरीददारी करना यानि प्रेम की शरण गहना आवश्यक है।
भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें :-
प्रश्न 8.
(क) एक बार जौ मरि जीउ पावै।
काल बहुरि तेहि नियर न आवै।
उत्तर-
ये पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक से महाकवि मंझन के पद से ली गई _हैं। इन पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि जो व्यक्ति एक बार अपने जीवन के महत्व को समझते हुए इसपर विजय प्राप्त कर लिया यानि स्वयं को एक बार मार लिया उसके पास दूसरा कोई भी फटक नहीं सकता।
कवि के कहने का भाव यह है कि मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए स्वयं को मारना पड़ता है। ‘जिन’ बनना पड़ता है। इस नश्वर भोग-विलासी संसार के माया जाल से स्वयं को ऊपर उठाते हुए ही मनुष्य शिखर पर चढ़ सकता है।
स्वयं को मारने वाला ही व्यक्ति अमरत्व को, प्राप्त कर सकता है और काल भी उसके निकट नहीं आता। इन पंक्तियों में आध्यात्मिक भाव का पुट है। कवि इस लौकिक जगत के मोह माया से ऊपर उठकर स्वयं को न्योछावर यानि बलिवेदी पर चढ़ने का आह्ववान करता है वही पुरुष मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है।
मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए स्वयं के अस्तित्व को मिटाकर ब्रह्म यानि सत्य के निकट पहुँचना आवश्यक है।
(ख) मिरितुक फल अंब्रित होइ गया। निहचै अमर ताहि के कया।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित मंझन के पद से ली गई हैं। इन पंक्तियों का भाव-सौंदर्य यह है कि जो व्यक्ति संसार की वासनाओं तृष्णाओं को छोड़ देता है अर्थात् उसके पीछे नहीं भटकता अर्थात् उसके लिए वह निष्प्राण होकर जीता है, उसको तो अमरता का फल प्राप्त हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की काया निश्चित रूप से अमर हो जाती है।
इन पंक्तियों में कवि ने लौकिकता से ऊपर उठकर अलौकिक जगत की ओर उन्मुख होने का संकेत करता है। कवि का कहना है कि अमरत्व प्राप्ति यानि मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए सत्यपथ का गमन आवश्यक है। वह सत्य पथ है-प्रेम का अनुसरण करना।
प्रेम शाश्वत एवं अनमोल वस्तु है। बिना उसके मोक्ष संभव नहीं। इस प्रकार मृत्यु से मुक्ति प्रेम भक्ति ही दिला सकती है। प्रेम के महत्व की व्याख्या सभी कवियों ने मुक्त कंठ से की है।
प्रश्न 9.
प्रेम के सर्वस्व समर्पण से व्यक्ति के निजी जीवन में आत्मिक सुंदरता आ जाती है, यह परिपक्वता कवि के विचारों में किस प्रकार आती है, स्पष्ट करें।
उत्तर-
उपरोक्त पंक्तियों में महाकवि मंझन ने प्रेम के महत्व का वर्णन करते हुए कहा है कि जिस आदमी के हृदय में प्रेम की ज्योति जलती है, वह कोई साधारण मनुष्य नहीं होता, वह अवतारी या असाधारण पुरुष होता है।
ब्रह्मा ने प्रेम के कारण ही इस संसार की सृष्टि की है। प्रेम ऐसा बहुमूल्य तत्व है कि इसके जोड़ का कोई तत्व नहीं। प्रेम जिसको प्राप्त हो जाता है उसका जीवन सार्थक हो जाता है। वह व्यक्ति प्रेम के सुहाग को प्राप्त कर लेता है। प्रेम शब्द का महत्व सदैव रहा है और आगे भी रहेगा। इसका मूल्य शाश्वत है।
प्रेम की सौदागिरी करने वाला व्यक्ति कभी भी घाटे में नहीं रहता। खरीदने वाला हो चाहे बेचने वाला दोनों को लाभ मिलता है।
प्रेम की शरण में रहने वाले को काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। संसार में अनेक उदाहरण हैं जिन्होंने प्रेम की अलख जगायी वे अमर हो गए। मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लिए। सारा विश्व उन्हें नमन करता है। बुद्ध, महावीर, राम, कृष्ण इसी परंपरा में आते हैं। इस प्रकार प्रेम बिना इस संसार से मुक्ति संभव नहीं। प्रेम की शरण में नियम पूर्वक रहने वाला मनुष्य कालजयी बन जाता है। इतिहास पुरुष बन जाता है। प्रेम, मनुष्य के जीवन एवं व्यक्तित्व में निखार ला देता है। उसमें चमक पैदा कर देता है। उसकी आभा से ज्योति से सारी दुनिया दिशा ग्रहण करती है।
इस प्रकार प्रेम का मानव जीवन में अनमोल महत्व है। इसके अभाव में जीवन की पूर्णता संभव नहीं।
प्रश्न 10.
प्रेम की शरण में जाने पर जीव की क्या स्थिति होती है?
उत्तर-
महाकवि मंझन सूफी काव्यधारा के प्रमुख कवि थे। सूफी कवियों ने लौकिक जगत के क्रिया-कलापों का अपने काव्य में जगह देते हुए प्रकारान्तर से अलौकिक जगत की व्याख्या की है।
यहाँ भी ‘प्रेम’ शब्द का प्रयोग मंझन ने अपने काव्य में अधिकता के साथ किया है। प्रेम की शरण में जाने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रेम के संसार में विचरण करने वाला मनुष्य राग-द्वेष, भय-लोभ से मुक्त हो जाता है। यह नश्वर संसार उसे अपनी ओर आकृष्ट नहीं कर पाता। ‘प्रेम की पीर’ की व्याख्या सूफी कवियों ने प्रमुखता से की है। जिसने प्रेम को पा लिया उसका जीवन सार्थक हो गया। वह सत्य को पा लिया। वह ईश्वर को पा लिया। वह इस भौतिक संसार से ऊपर उठ गया। वह कालजयी बन गया। काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। काल भी उसके त्याग बलिदान और कर्म से घबराता है। प्रेम के वशीभूत होकर ही जीवन को भौतिक जगत से मुक्ति मिल सकती है। इस प्रकार प्रेम सर्वोपरि है, अनश्वर है।, शाश्वत है।
जो बलिदानी पुरुष है उसे ही प्रेम से साक्षात्कार संभव है। प्रेम को खरीदने वाला और बेचने वाला दोनों को घाटा नहीं होता है यानि दोनों अमरत्व को प्राप्त करते हैं।
जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ले वही कालाजयी पुरुष कहलाता है। यह तभी संभव है जब वह प्रेम की शरण में रहता हो। जो वासनाओं, तष्णाओं से मुक्त हो, सांसारिक मोह-माया से निर्लिप्त हो वही ‘जिन’ कहलाता है।
काल से भयभीत हुए मनुष्य को तो सदैव प्रेम की शरण गहनी चाहिए। जगत में प्रेम की महत्ता है, शाश्वत मूल्य है। वह अमरत्व प्रदान करने वाला है। मोक्ष दिलाने वाला है। जीवन को सुहागमय बनाने वाला है। अतः सच्चे मनुष्य को प्रेम की शरण सदैव पकड़नी चाहिए।
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