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विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ | 2. यूरोप में समाजवाद एवं रुसी क्रांति |
वर्ग | 9th |
भाग | इतिहास |
Category | Bihar Board Class 9 Solutions |
Bihar Board Class 9 History Solutions Chapter 2
यूरोप में समाजवाद एवं रुसी क्रांति
प्रश्न 1.
रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1905 से पहले कैसे थे ?
उत्तर
- ग्रामीण क्षेत्रों में समाज मजदूरों, अभिजात वर्ग और चर्च के बीच बँटा हुआ था। अभिजात वर्ग व चर्च के सदस्यों के पास विशाल भूमिखंड थे। शहरों में समाज मालिकों और नौकरों में विभाजित था। श्रमिक अपने-अपने कौशलों के अनुसार समूहों में बँटे हुए थे। महिला श्रमिक कुल श्रमिक संख्या का 31 प्रतिशत थे।
- ग्रामीण क्षेत्रों में 85 प्रतिशत जनसंख्या कृषि-संबंधी कार्यों से जुड़ी हुई थी। इसमें से अधिकतर श्रमिक या छोटे किसान थे। शहरों में कारखानों के मजदूरों को बहुत कम तनख्वाहें दी जाती थीं। उनकी आय उनके सामाजिक जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए पर्याप्त न थी। श्रमिक लगातार 12-15 घंटे कार्य करते रहते थे। कारखानों से प्राप्त लाभ पूर्ण रूप से मालिकों की संपत्ति होता था।
- मजदरों, भूमिहीन किसानों व महिलाओं को राष्ट्र की शासन प्रक्रिया में भाग लेने का कोई अधिकार नहा था। शासन सत्ता केवल राजवंश के हाथों में थी। प्रजातंत्र का अस्तित्व नहीं था।
प्रश्न 2.
1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी?
उत्तर
- 1917 से पूर्व रूस की लगभग 85 प्रतिशत श्रमिक जनसंख्या कषि-संबंधी कार्यों में लिप्त थी| वे इसी से आय प्राप्त करते थे। शहरों में कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या बहुत कम था।
- अन्य यूरोपीय देशों में कृषि-संबंधी कार्यों में लिप्त श्रमिक जनसंख्या बहत कम थी। उदाहरण के लिए फ्रांस और जर्मनी में यह जनसंख्या 40 से 50 प्रतिशत थी।
- रूसी श्रमिकों का सामाजिक जीवन अन्य यरोपीय श्रमिकों से अलग था। रूस में छोटे किसान कम्यून में रहकर सामुदायिक कृषि करते थे, तथा उत्पादन व लाभ को परिवारों की आवश्यकतानुसार आपस में बाँट लिया करते थे|
प्रश्न 3.
1917 में ज़ार का शासन क्यों खत्म हो गया ?
उत्तर
1917 में ज़ार का शासन निम्नलिखित कारणों से खत्म हुआ:
- 1917 से पूर्व रूस में आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ अत्यंत विचारणीय थीं। प्रथम गृहयुद्ध में 70 लाख रूसी मारे गए थे, तथा फसलों व इमारतों के नष्ट हो जाने के कारण 30 लाख लोग शरणार्थी बन गए थे।
- सैनिक युद्ध लड़ने के पक्ष में नहीं थे, इसीलिए वे युद्ध को जारी रखने के सरकारी निर्णय के विरुद्ध थे।
- 22 फरवरी को सरकारी अधिकारियों ने एक फैक्ट्री में तालाबंदी कर दी, जिसके कारण 50 फैक्ट्रियों के मज़दूरों ने हड़ताल कर दी।
- 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को स्थगित कर दिया। इस कारण 26 फरवरी को सड़कों पर बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन किया गया।
- सरकार ने घुडसवार फौज को प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ बरसाने का आदेश दिया ताकि स्थिति को नियंत्रण में लाया जा सके। परंतु फौज ने यह आदेश मानने से इंकार कर दिया और मजदूरों से हाथ मिला लिया।
- अंत में फौज और श्रमिकों ने मिलकर ‘सोवियत’ या ‘पेत्रोग्राद सोवियत’ का निर्माण किया। इस प्रकार, फरवरी क्रांति ने ज़ार के शासन का अंत कर दिया।
प्रश्न 4.
दो सूचियाँ बनाइए : एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्तूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।
उत्तर
फरवरी क्रांति (1917) की तिथियाँ व घटनाएँ
- 22 फरवरी-दाहिने किनारे की एक फैक्ट्री में तालाबंदी। अगले दिन 50 फैक्ट्रियों के श्रमिकों की हड़ताल।
- 24 और 25 फरवरी- सरकार द्वारा ड्यूमा का स्थगन। राजनीतिकों द्वारा इस कदम की आलोचना।
- 26 फरवरी-श्रमिक बहुत बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे।
- 27 फरवरी-श्रमिकों द्वारा पुलिस मुख्यालय पर हमला।
- 2 मार्च-ज़ार का पदत्याग। ज़ार के शासन का अंत।
अक्तूबर क्रांति (1917) की तिथियाँ व घटनाएँ
- 16 अक्तूबर-लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता हथियाने के लिए राजी कर
लिया। इस कार्य हेतु एक सैन्य क्रांतिकारी समिति का गठन किया गया। - 24 अक्तूबर-विद्रोह की शुरुआत हुई। दो बोल्शेविक समाचारपत्रों की इमारतों पर नियंत्रण किया गया।
टेलीफोन व टेलीग्राफ विभागों पर भी नियंत्रण किया गया। विन्टर पैलेस की सुरक्षा का प्रबंध किया गया। इन सरकारी गतिविधियों के जवाब में सैन्य क्रांतिकारी समिति के सदस्यों ने अनेक सैन्य ठिकानों पर
कब्जा किया। रात होते-होते पूरा शहर समिति के नियंत्रण में आ गया और मंत्रियों ने त्यागपत्र दे दिए। - दिसम्बर तक मॉस्को-पेत्रोग्राद क्षेत्र पर बोल्शेविकों का पूर्ण नियंत्रण हो गया।
फरवरी क्रांति में पुरुष व महिला श्रमिक, दोनों शामिल थे। मार्फा वासीलेवा एक महिला श्रमिक ने अकेले ही सफल हड़ताल की। अक्तूबर क्रांति में मुख्यतः बोल्शेविक शामिल थे। क्रांतिकारियों के प्रमुख नेता थे लेनिन और लियोन त्रात्सकी। फरवरी क्रांति के परिणामस्वरूप राजवंश का अंत हुआ, जबकि अक्तूबर क्रांति के पश्चात् बोल्शेविकों ने सत्ता पर नियंत्रण कर लिया और रूस में साम्यवादी दौर की शुरुआत हुई।
प्रश्न 5.
बोल्शेविकों ने अक्तूबर क्रांति के फ़ौरन बाद कौन-कौन-से प्रमुख परिवर्तन किए?
उत्तर
अक्तूबर क्रांति के तुरंत बाद बोल्शेविकों द्वारा निम्नलिखित परिवर्तन किये गये:
- अधिकतर उद्योग और बैंक राष्ट्रीयकृत कर दिये गये।
- भूमि को सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर दिया गया, तथा श्रमिकों को अभिजात वर्ग की ज़मीनों पर नियंत्रण करने का अधिकार दिया गया।
- शहरों में बड़े घरों में कई परिवारों को आवास दिया गया।
- अभिजात वर्ग की पदवियों पर पाबंदी लगा दी गई।
- सेना और अधिकारियों के लिए नई वर्दी, उदाहरण के लिए सोवियत हैट, नियत की गई।
- बोल्शेविक पार्टी का नाम बदलकर रूसी साम्यवादी पार्टी कर दिया गया।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए :
- कुलक
- ड्यूमा
- 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार
- उदारवादी
- स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम
उत्तर
- कुलक – रूस में बड़े किसानों को कुलक कहा जाता था। 1928 में साम्यवादी पार्टी के सदस्यों में ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया तथा कलकों के खेतों में अनाज उत्पादन व संग्रहण का निरीक्षण किया।
- ड्यूमा- रूस में निर्वाचित परामर्शी संसद को ड्यूमा कहते हैं। इसे 1905 की क्रांति के पश्चात जार दाग गठित किया गया था। परंतु जार ने प्रथम ड्यूमा 75 दिनों के भीतर स्थगित कर दी।
- 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार- फैक्ट्री मजदूरों का 31 प्रतिशत महिला कामगारों का था। परंतु, उन्हें पुरुष श्रमिकों से कम मजदूरी मिलती थी। अधिकतर फैक्ट्रियों में उन्हें पुरुषों की मजदूरी का आधा या तीन-चौथाई ही दिया जाता था। इसी कारण उन्होंने विद्रोह में पुरुषों का साथ दिया। 22 फरवरी, 1917 को कई फैक्ट्रियों में महिला कामगारों ने हड़ताल की। इसीलिए इस दिन को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के नाम से जाना जाता है। रूसी क्रांति के दौरान महिलाएँ पुरुष क्रांतिकारियों को प्रेरित करती थीं। मार्फा वासीलेवा नामक एक
मक ने अकेले ही हड़ताल की घोषणा की। जब मालिकों ने उसके पास डबलरोटी का टुकड़ा भेजा, तो उसने वह ले लिया परंत काम पर वापस जाने से इंकार कर दिया। उसने कहा, “ऐसा नहीं हो सकता कि केवल मेरा पेट भरा रहे और बाकी सब भूखों मरें।” - उदारवादी – उदारवादी रूस में सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर थे। वे चाहते थे कि राष्ट्र धर्म-निरपेक्ष हो, अर्थात् सभी धर्मों का सम्मान हो। वे राजवंश की अनियंत्रित शक्ति के विरुद्ध थे। वे सरकार के विरुद्ध व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा चाहते थे। वे चाहते थे कि राष्ट्र को एक निर्वाचित संसद द्वारा गठित और एक स्वतंत्र न्यायपालिका द्वारा लागू विधान के अनुसार चलाया जाए। किंतु वे लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते थे। वे सार्वजनिक मताधिकार के भी विरुद्ध थे। इसके विपरात, वे चाहते थे कि केवल समृद्ध पुरुष ही वोट दें। वे महिलाओं को मताधिकार देने के विरुद्ध थे।
- स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम- रूस में अनाज की कमी को देखते हुए स्टालिन ने छोटे-छोटे खेतों के सामहिकीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ की क्योंकि वह मानता था कि छोटे-छोटे भूमि के टुकड़े आधुनिकीकरण में बाधा डालते हैं। इसलिए छोटे-छोटे किसानों से उनकी जमीन छीनकर राज्य के नियंत्रण में एक विशाल जमीन का टुकड़ा बनाया जाना था। सभी किसानों को राज्य बाध्य करती थी कि सामूहिक खेती करें। सामूहिक खेती करने के लिए बड़ी भूमि अर्जित करना ही स्टालिन की सामूहिकीकरण प्रक्रिया कहलाया।
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