Bihar Board Class 10 Hindi Padya Solutions Chapter 1: राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै

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विषयहिन्दी (गोधूलि भाग 2), पद्य
अध्याय1. राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै
कविगुरु नानक
कक्षादसवां
CategoryBihar Board Class 10 Solutions

Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 1 Solutions

राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै

कविता के साथ

Q1) कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?

उत्तर )कवि राम-नाम के बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है। राम-नाम के बिना व्यतीत होने वाला जीवन केवल विष का भोग करता है।

Q2) वाणी कब विष के समान हो जाती है ?

उत्तर )जब वाणी वाह्य आडंबर से सम्पन्न होकर राम-नाम को त्याग देती है तब वह विष हो जाती है। राम-नाम के अतिरिक्त उच्चरित ध्वनि काम-क्रोध, मद सेवन आदि से परिपूर्ण होती है।

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Q3) नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है?

उत्तर )नाम-कीर्तन के आगे कवि संध्या, वेदपाठ, कमंडल और शिखा, जनेऊ आदि कार्यों को निरर्थक मानता है । जटा बढ़ाने और भस्म लगाने से मुक्ति नहीं मिलती है। इस संसारिक जीवन में केवल राम-नाम का जाप ही एक ऐसा साधन है जिससे भवसागर पार किया जा सकता है।

Q4) प्रथम पद के आधार पर बताएं कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे?

उत्तर )प्रथम पद में कवि ने धर्म साधना के अनेक लोक प्रचलित रूप की चर्चा करते हैं। सिखा बढ़ाना, ग्रंथों का पाठ करना, व्याकरण वाचना इत्यादि धर्म साधना माने जाते हैं। इसी तरह तन में भस्म रमाकर साधु वेश धारण करना, तीर्थ करना, डंड कमण्डल धारी होना, वस्त्र त्याग करके नग्न रूप में घूमना भी कवि के युग में धर्म-साधना के रूप रहे हैं। पद में इन्हीं रूपों का बखान कवि ने दिये हैं।

Q5) हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है?

उत्तर )हरिरस से अभिप्राय गुरु-कृपा और ईश्वर रसास्वादन से है जिसने अपने जीवन को राम-नाम में सराबोर कर दिया उसने इस भवसागर से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर लिया।

Q6) कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है ?

उत्तर )कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास, ईर्ष्या, क्रोध, काम आदि से रहित मानव के हृदय में है।

Q7) गुरु की कृष्ण से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ?

उत्तर )गुरु की कृपा से ईश्वर से एकाकार होने की युक्ति मिलती है । जिस तरह पानी-पानी के साथ मिलकर अपने अस्तित्व को अर्पण कर देता है। उसी प्रकार मानव भी ईश्वर के परमपद को प्राप्त कर अपने जीवन को उसी में समर्पण कर देता है।

Q8) व्याख्या करें :

(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै ।
(ख) कंचन माटी जाने ।
(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।
(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी।

उत्तर क) प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने जीवन की प्रासांगिकता पर विशेष बल दिया है । बाह्य आडम्बर में लगा हुआ मानव सांसारिक सुख की लिप्सा करता है ईश्वर से विरक्त होकर वह ईर्ष्या, क्रोध, मद से युक्त होकर संसार का अंधकूप बना रहता है । जीवन अबूझ पहेली है। अतः, जीवन की सार्थकता राम-नाम के जाप में है।

उत्तर ख) प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि ने सांसारिक गतिविधियों पर कुठाराघात किया है। ईश्वर-भक्ति के बिना जीवन शून्य है । बाह्य-आडम्बर में स्थित वह कंचन को मिट्टी समझने लगता है । आध्यात्मिक सुख को छोड़कर वह सांसारिक वैभव की खोज में इधर-उधर भटकने लगता है

उत्तर ग) प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि ने सांसारिक जीवन से दूर एक नई पहचान बनाने पर बल दिया है । ईश्वर के चरणों में समर्पित रहनेवाला सांसारिक हर्ष, शोक, मान, अपमान आदि जैसी गतिविधियों पर ध्यान नहीं देता है । राम-नाम ही उसका, जीवन है और ईश्वर स्तुति ही उसके जीवन की पराकाष्ठा है।

उत्तर घ) प्रस्तुत पंक्ति के द्वारा कवि ने राम-नाम के माध्यम से परम तत्त्व पाने की महत्ता पर बल दिया है । परमात्मा में लीन होनेवाला सांसारिक जीवन से दूर रहता है । गुरु कृपा पाकर वह गोविन्द से एकाकार प्राप्त कर लेता है ।

Q9) आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों . की क्या प्रासंगिकता है ? अपने शब्दों में विचार करें।

उत्तर ) वर्तमान परिवेश में रहन-सहन, खान-पान आदि के साथ-साथ उपासना, पूजा-पाठ में भी काफी बदलाव आ गया है । इस भौतिकवादी युग में सांसारिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए लोग तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं । ईश्वर की भक्ति सहज मन से नहीं, दिखावे के रूप में की जाती हैं। पूजा-पाठ, तीर्थ पर बल दिया जाने लगा है। इनपर अधिक-से-अधिक खर्च किये जाते हैं ताकि ये कार्य अच्छे ढंग से सम्पन्न हो जाएँ। ऐसी आम धारणा अधिक देखने को मिल रही है। नानक के पद आज की भक्ति भावना पर व्यंग्य हैं। नानक ने पूजा-पाठ, कर्मकांड, तीर्थ आदि के स्थान पर सच्चे हृदय से राम-नाम के कीर्तन पर बल दिया है

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