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विषय | हिन्दी (गोधूलि भाग 2), पद्य |
अध्याय | 4. स्वदेशी |
कवि | प्रेमघन |
कक्षा | दसवां |
Category | Bihar Board Class 10 Solutions |
Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 4 Solutions
स्वदेशी
कविता के साथ
Q1) कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ) वस्तुत: किसी भी गद्य या पद्य का शीर्षक वह धुरी होता है जिसके चारों तरफ कहानी या भाव घूमते रहता है। रचनाकार शीर्षक देते समय उसके कथानक, कथावस्तु, कथ्य को ध्यान में रखकर ही देता है। प्रस्तुत कविता का शीर्षक ‘स्वदेशी’ अपने आप में उपयुक्त है। पराधीन भारत की दुर्दशा और लोगों की सोच को ध्यान में रखकर इस शीर्षक को रखा गया है। अंग्रेजी वस्तुओं को फैशन मानकर नये समाज की परिकल्पना करते हैं।
रहन-सहन खान-पान आदि सभी पाश्चात्य देशों का ही अनुकरण कर रहे हैं। स्वदेशी वस्तुओं को तुच्छ मानते हैं। हिन्दु, मुस्लमान, ईसाई आदि सभी विदेशी वस्तुओं पर ही भरोसा रखते हैं। उन्हें अपनी संस्कृति विरोधाभास लाती है। बाजार में विदेशी वस्तुएँ ही नजर आती है। भारतीय कहने-कहलाने पर अपने आप को हेय की दृष्टि से देखते हैं। सर्वत्र पाश्चात्य चीजों का ही बोल-बाला है। अतः इन दृष्टान्तों से स्पष्ट होता है। प्रस्तुत कविता का शीर्षक सार्थक और समीचीन है।
Q2) कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती ?
उत्तर ) किसी देश के प्रति वहाँ के जनता की कितनी निष्ठा है, देशवासी को अपने देश की संस्कृति में कितनी आस्था है यह उसके रहन-सहन, बोल-चाल, खान-पान से पता चलता है। कवि को भारत में स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि यहाँ के लोग विदेशी रंग में रंगे हैं। खान-पान, बोल-चाल, हाट-बाजार अर्थात् सम्पूर्ण मानवीय क्रिया-कलाप में अंग्रेजीयत ही अंग्रेजीयत है। पाश्चात्य सभ्यता का बोल-बाला है। भारत का पहनावा, रहन-सहन, खान-पान कहीं दिखाई नहीं देता है। हिन्दू हों या मुसलमान, ग्रामीण हो या शहरी, व्यापार हो या राजनीति चतुर्दिक अंग्रेजीयत की जय-जयकार है। भारतीय भाषा, संस्कृति, सभ्यता धूमिल हो गई है। अतः कवि कहते हैं कि भारत में भारतीयता दिखाई नहीं पड़ती है।
Q3) कवि समाज के किए वर्ग की आलोचना करता है और क्यों ?
उत्तर ) उत्तर भारत में एक ऐसा समाज स्थापित हो गया है जो अंग्रेजी बोलने में शान की बात समझता है। अंग्रेजी रहन-सहन, विदेशी ठाट-बाट, विदेशी बोलचाल को अपनाना विकास मानते हैं। हिन्दुस्तान की नाम लेने में संकोच करते हैं। हिन्दुस्तानी कहलाना हीनता की बात समझते ।। हैं। झूठी प्रशंसा करते हुए फूले नहीं समाते। अपनी मूल संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर गौरवान्वित होना अपने देश में प्रचलित हो गया है। ऐसी प्रचलन को बढ़ावा देने वाले वर्ग की कवि आलोचना करते हैं क्योंकि यह देशहित की बात नहीं है। ऐसा वर्ग देश को पुनः अपरोक्ष रूप से विदेशी-दासता के बंधन में बाँधने को तत्पर हो रहा है।
Q4) कवि नगर, बाजार ओर अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है ?
उत्तर ) कवि के अनुसार आज नगर में स्वदेशी की झलक बिल्कुल नहीं दिखती। नगरीय व्यवस्था, नगर का रहन-सहन सब पाश्चात्य सभ्यता का अनुगामी हो गया है। बाजार में वस्तुएँ विदेशी दिखती हैं। विदेशी वस्तुओं को लोग चाहकर खरीदते हैं। इससे विदेशी कंपनियाँ लाभान्वित हो रही हैं। स्वदेशी वस्तुओं का बाजार-मूल्य कम हो गया है। ऐसी प्रथा से देश की आर्थिक स्थिति पर कुप्रभाव पड़ रहा है। चतुर्दिक विदेशीपन का होना हमारी कमजोरी उजागर कर रही है।
Q5) नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
उत्तर ) आज देश के नेता, देश के मार्गदर्शक भी स्वदेशी वेश-भूषा, बोल-चाल से परहेज करने लगे हैं। अपने देश की सभ्यता संस्कृति को बढ़ावा देने के बजाय पाश्चात्य सभ्यता से स्वयं प्रभावित दिखते हैं। कवि कहते हैं कि जिनसे धोती नहीं सँभलती अर्थात् अपने देश के वेश-भूषा को धारण करने में संकोच करते हों वे देश की व्यवस्था देखने में कितना सक्षम होंगे यह संदेह का विषय हो जाता है। जिस नेता में स्वदेशी भावना रची-बसी नहीं है, अपने देश की मिट्टी से दूर होते जा रहे हैं, उनसे देश सेवा की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। ऐसे नेताओं से देशहित की अपेक्षा करना ख्याली-पुलाव है।
Q6) कवि ने ‘डफाली’ किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर ) जिन लोगों में दास-वृत्ति बढ़ रही है, जो लोग पाश्चात्य सभ्यता संस्कृति की दासता के बंधन में बंधकर विदेशी रीति-रिवाज का बने हुए हैं उनको कवि डफाली की संज्ञा देते हैं क्योंकि व विदेश की पाश्चात्य संस्कृति की, विदेशी वस्तुओं की, अंग्रेजी की झूठी प्रशंसा में लगे हुए हैं। डफाली की तरह राग-अलाप रहे हैं, पाश्चात्य की, विदेशी एवं अंग्रेजी की गाथा गा रहे हैं।
Q7) व्याख्या करें :
(क) मनुज भारती देखि कोउ, सकत नहीं पहिचान।
(ख) अंग्रेजी रूचि, गृह, सकल वस्तु देस विपरीत।
उत्तर क) प्रस्तुत पंक्ति प्रेमघनजी द्वारा रचित स्वदेशी कविता से सांकलित है। इसमें कवि ने भारतीयता पर विशेष बल दिया है। भारतीय अपनी संस्कृति को ही भूल गये हैं। उन्हें अपनी पहचान से ईर्ष्या है। अपने लोगों को देखकर भी नजर फेरने की कोशिश करते हैं। हिन्दु, मुसलमान, सिख, ईसाई आदि सभी विदेशी वस्तुओं को पदावा देने में लगे हुए हैं। वस्तुतः यहाँ कवि में पराधीन भारत को दुर्दशा और भारतीयों की सोच को विशेष रूप से प्रस्तुत किया है।
उत्तर ख) प्रस्तुत पंक्ति प्रेमचन’ द्वारा रचित स्वदेशी शीर्षक कविता से संकलित है। कपि, हम अपना रहन-सहन, खान-पान आदि छोड़कर विदेशी वस्तुओं को अपनाने पर बल देते जा रहे । यहाँ पाश्चात्य अलंकरण से अलंकृत भारतीयों की मनोदशा का सजीवात्मक चित्रण किया । हमें स्वदेशी वस्तुओं में हीपता नजर आने लगी है। हमें पाश्चात्य संस्कृति अच्छी लगने लगी है।
Q8) आपके मत से स्वदेशी की भावना किस दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली है ? स्पष्ट करें।
हिन्दुस्तानी, नामसुनि………हाय घिनात।
कवि ने इस दोहे के द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि भारतीय ही अपनी संस्कृति को निम्न समझता है। हिन्दुस्तान या भारतीय का नाम सुनकर ही वे लोग अपने-आप से घृणा करने लगते हैं। पश्चिमी वस्तुओं में वे इतने रम गये हैं कि उन्हें अपना धर्म, पर्व आदि सभी में ढोंग नजर आता है।
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