Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 1: लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

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SubjectPolitical Science (राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 2)
Chapter1. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी
ClassTenth
CategoryBihar Board Class 10 Solutions

Bihar Board Class 10 Political Science Chapter 1 Solutions

लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

प्रश्न 1. ‘हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती’। कैसे?

उत्तर- यह सच है कि हर सामाजिक विभिन्नता विभाजन का रूप नहीं लेती। सामाजिक भेद विभिन्नता के आधार पर लोगों को एकजुट भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, भोजन की पसंद में भिन्नता विभाजन नहीं लाती, वहीं धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव विभाजन का कारण बन सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इन भेदों को कैसे देखते हैं और उनका व्यवहार करते हैं।

प्रश्न 2. सामाजिक अन्तर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?

उत्तर- सामाजिक अन्तर सामाजिक समूहों या वर्गों के बीच मौजूद सामाजिक अंतर या भेद होते हैं। ये भेद विभिन्न कारकों और प्रक्रियाओं के द्वारा उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे कि जाति, धर्म, जाति, लैंगिकता, आर्थिक स्थिति, शैक्षिक स्तर, भाषा, स्थानिकता, आदि।

इन सामाजिक अंतरों को स्थायी और गहरे रूप से स्थापित करने के लिए कई कारक महत्वपूर्ण होते हैं। ये कारक आमतौर पर सामाजिक संरचना, सामाजिक नीतियाँ, संस्कृति, शिक्षा, आर्थिक नीतियाँ, धार्मिक और राजनीतिक प्रक्रियाएँ, सामाजिक मान्यताएँ, आदि के माध्यम से प्रभावित करते हैं।

सामाजिक अंतर बनाने वाले कुछ मुख्य कारक हो सकते हैं:

  • शक्ति और संसाधनों का वितरण: धन, संसाधन, शिक्षा, और स्थिति के विभाजन सामाजिक अंतरों को बढ़ावा देता है।
  • आर्थिक स्थिति: आर्थिक स्थिति के भेद सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देते हैं।
  • शैक्षिक स्थिति: शिक्षा के अभाव या उपलब्धता भी समाज में अंतर को बढ़ा सकता है।
  • सामाजिक मान्यताएँ और संस्कृति: विभिन्न समुदायों या समाजों में अलग-अलग मान्यताओं और संस्कृतियों का होना भी विभाजनों को प्रभावित कर सकता है।
  • राजनीतिक और सामाजिक नीतियाँ: राजनीतिक और सामाजिक नीतियाँ भी सामाजिक अंतर को बढ़ावा दे सकती हैं।
  • सामाजिक संरचना: समाज में संरचना और व्यवस्था की विभिन्नताएँ भी भेदों को बढ़ा सकती हैं।

इन सामाजिक अंतरों का अध्ययन सामाजिक विज्ञान और समाजशास्त्र के अध्ययन का हिस्सा है, जिससे हम समाज में अंतरों को समझ सकते हैं और उन्हें कम करने के उपाय खोज सकते हैं।

प्रश्न 3. ‘सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणामस्वरूप ही लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होता है। भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इसे स्पष्ट करें।

उत्तर- भारत एक बहु-धार्मिक, बहु-जातीय और बहु-भाषाई देश है। यहाँ विभिन्न सामाजिक समूहों, धर्मों, जातियों और भाषाओं के लोग रहते हैं। सामाजिक विभाजनों की राजनीति का अर्थ है कि राजनीतिक दल इन विभिन्न समूहों को वोट हासिल करने के लिए अपने पक्ष में लाने की कोशिश करते हैं।

प्रभाव:

सकारात्मक प्रभाव:

  • सामाजिक न्याय: सामाजिक विभाजनों की राजनीति ने वंचित समूहों को राजनीतिक भागीदारी और सामाजिक न्याय प्राप्त करने में मदद की है।
  • विविधता का सम्मान: यह राजनीति विभिन्न सामाजिक समूहों की विविधता और संस्कृति का सम्मान करने को बढ़ावा देती है।
  • समावेशी लोकतंत्र: यह सभी समूहों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • नकारात्मक प्रभाव:
  • सामाजिक विभाजन: यह राजनीति सामाजिक समूहों के बीच विभाजन को बढ़ा सकती है।
  • राजनीतिक अस्थिरता: यह राजनीतिक अस्थिरता और गठबंधन सरकारों का कारण बन सकती है।
  • भ्रष्टाचार: यह राजनीतिक दलों को वोट हासिल करने के लिए वोट खरीदने और अन्य भ्रष्ट तरीकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।

उदाहरण:

भारत में, आरक्षण प्रणाली सामाजिक विभाजनों की राजनीति का एक परिणाम है।
विभिन्न राजनीतिक दल विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए अलग-अलग नीतियां और कार्यक्रम बनाते हैं।
चुनावों में, राजनीतिक दल विभिन्न सामाजिक समूहों के वोटों को आकर्षित करने के लिए जाति, धर्म और भाषा के आधार पर प्रचार करते हैं।
निष्कर्ष:

सामाजिक विभाजनों की राजनीति भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव है। लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए, इन प्रभावों को ध्यान में रखना और सामाजिक न्याय और समावेश को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 4. सत्तर के दशक से आधुनिक दशक के बीच भारतीय लोकतंत्र का सफर (सामाजिक न्याय के संदर्भ में) का संक्षिप्त वर्णन करें।

उत्तर- सत्तर के दशक से आज तक, भारतीय लोकतंत्र सामाजिक न्याय की राह पर निरंतर आगे बढ़ा है।

  • पहले कदम: आरक्षण नीतियों के ज़रिए दलितों, आदिवासियों और पिछड़ी जातियों को शिक्षा और नौकरियों में अवसर मिले।
  • जागरूकता का बढ़ना: सामाजिक आंदोलनों ने गरीबी, भेदभाव जैसे मुद्दों को उठाया, जिससे सरकारें जवाबदेह बनीं।
  • महिला सशक्तिकरण: महिला आरक्षण, पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी।
  • हालांकि, सामाजिक समानता का लक्ष्य अभी भी दूर है। गरीबी, भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं।

आगे भी प्रयास जारी रहने चाहिए ताकि हर वर्ग को समान अवसर मिल सकें.

प्रश्न 5. सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम किन-किन चीजों पर निर्भर करता है?

उत्तर- सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम कई चीजों पर निर्भर करते हैं, जिनमें मुख्य हैं:

  • सरकार का रवैया: यदि सरकार विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देती है और विभिन्न समुदायों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश नहीं करती, तो इससे सामाजिक तनाव और हिंसा का खतरा बढ़ जाता है. दूसरी ओर, अगर सरकार समावेशी नीतियां अपनाती है और अल्पसंख्यक समुदायों की जायज मांगों को पूरा करने का प्रयास करती है, तो इससे सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में मदद मिलती है.
  • राजनीतिक दलों की भूमिका: राजनीतिक दल सामाजिक विभाजन को कम करने या बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं. यदि दल लोगों को जाति, धर्म आदि के आधार पर बांटने की कोशिश करते हैं, तो इससे सामाजिक विभाजन गहरा होता है. वहीं, अगर दल सभी समुदायों को साथ लेकर चलने और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने पर ध्यान देते हैं, तो इससे सामाजिक सौहार्द कायम होता है.
  • समाज का नजरिया: समाज का नजरिया भी काफी अहम है. यदि समाज में आपसी सहिष्णुता और संवाद की कमी है, तो सामाजिक विभाजन आसानी से राजनीति का मुद्दा बन सकता है. दूसरी ओर, अगर समाज शिक्षित और जागरूक है तथा विभिन्न समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देता है, तो सामाजिक विभाजन को राजनीति में हथियार के रूप में इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाता है.

इन तीनों कारकों के साथ-साथ मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. मीडिया समाजिक सद्भाव बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है या फिर सामाजिक विभाजन को बढ़ावा दे सकता है.

प्रश्न 6. सामाजिक विभाजनों को संभालने के संदर्भ में इनमें से कौन-सा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?
(क) लोकतंत्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया (reflection) राजनीति पर भी पड़ता है।
(ख) लोकतंत्र में विभिन्न समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से अपनी शिकायतें जाहिर करना संभव है।
(ग) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल (accomodate) करने का सबसे अच्छा तरीका है।
(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर (on the basis of social division) समाज विखण्डन (disintegration) की ओर ले जाता है।
उत्तर-
(क) लोकतंत्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया (reflection) राजनीति पर भी पड़ता है।

प्रश्न 7.निम्नलिखित तीन बयानों पर विचार करें
(क) जहाँ सामाजिक अन्तर एक दूसरे से टकराते हैं (Social differences overlaps), वहाँ सामाजिक विभाजन होता है।
(ख) यह संभव है एक व्यक्ति की कई पहचान (multiple indentities) हो।
(ग) सिर्फ भारत जैसे बड़े देशों में ही सामाजिक विभाजन होते हैं।

इन बयानों में स कौन-कौन से बयान सही हैं?
(अ) क, ख और ग
(ब) के और ख
(स) ख और ग
(द) सिर्फ ग
उत्तर
(ब) के और ख

प्रश्न 8. निम्नलिखित व्यक्तियों में कौन लोकतंत्र में रंगभेद के विरोधी नहीं थे?
(क) किग मार्टिन लूथर
(ख) महात्मा गांधी
(ग) ओलंपिक धावक टोमी स्मिथ एवं जॉन कॉलेंस
(घ) जेड गुडी
उत्तर-
(ग) ओलंपिक धावक टोमी स्मिथ एवं जॉन कॉलेंस

प्रश्न 9. निम्नलिखित का मिलान करें
(क) पाकिस्तान
(अ) धर्मनिरपेक्ष
(ख) हिन्दुस्तान
(ब) इस्लाम
(ग) इंग्लैंड
(स) प्रोस्टेंट
उत्तर-
(क) (ब), (ख) (अ), (ग) (स)।

प्रश्न 10. भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेवारी और उद्देश्य पर एक अक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-

उत्तर- लोकतंत्र भविष्य के समाज के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाएगा। इसकी कुछ प्रमुख जिम्मेदारियां और उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  • विविधताओं का प्रबंधन: समाज में विभिन्नताएं बनी रहेंगी। धर्म, जाति, भाषा आदि भेदभावों से ऊपर उठकर लोकतंत्र को सभी को साथ लेकर चलना होगा।
  • न्यायपूर्ण शासन: लोकतंत्र का लक्ष्य सभी के लिए समान अवसर और न्याय सुनिश्चित करना है। भविष्य में भी गरीबी, भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियों का समाधान करना होगा।
  • सामूहिक सहभागिता: भविष्य में भी नागरिकों की सक्रिय भागीदारी लोकतंत्र की सफलता की कुंजी होगी। लोगों को अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग करना चाहिए और सरकार की नीतियों में सकारात्मक योगदान देना चाहिए।
  • सतत विकास: लोकतंत्र का उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय को भी बनाए रखना है। ये जिम्मेदारियां भविष्य में और भी महत्वपूर्ण हो I

संक्षेप में, लोकतंत्र का भविष्य का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जहां सभी खुशहाल रह सकें। इसके लिए सरकार और नागरिकों दोनों को मिलकर निरंतर प्रयास करने होंगे।

प्रश्न 11. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ जारी हैं ?

उत्तर भले ही भारत में संविधान सभी को समानता का अधिकार देता है, परंतु आज भी जातिगत असमानताएँ कई रूपों में देखने को मिलती हैं:

  • छुआछूत: दुर्भाग्य से, कुछ जातियों के साथ आज भी अछूत जैसा व्यवहार किया जाता है. उन्हें सार्वजनिक स्थानों से दूर रखा जाता है या उनके साथ भेदभाव किया जाता है.
  • सामाजिक बहिष्कार: कई बार, खास जातियों के लोगों को सामाजिक मेलजोल से दूर रखा जाता है, जैसे उनके साथ खाना न खाने या त्योहारों में शामिल न करने जैसा.
  • शिक्षा और रोजगार में असमानता: निचली जातियों के लोगों को अक्सर अच्छी शिक्षा या रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते. इससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर रहती है.
  • अंतर्जातीय विवाह में रुकावटें: आज भी कई समाजों में अपनी जाति से बाहर शादी करने पर पाबंदी है. इससे समाज में अनावश्यक भेदभाव बना रहता है.

सरकार इन असमानताओं को कम करने के लिए कई प्रयास कर रही है, लेकिन जागरूक समाज के निर्माण में हम सभी की भूमिका अहम है.

प्रश्न 12. क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते? इसके _ : दो कारण बतावें।

उत्तर – भारत में सिर्फ जाति के आधार पर चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते, इसके दो मुख्य कारण हैं:

(1) विविधता में एकता: भारत एक विशाल और विविधतापूर्ण देश है। यहां कई धर्म, भाषाएं और जातियां मौजूद हैं। किसी भी चुनाव में जीत के लिए विभिन्न जातियों के लोगों का समर्थन हासिल करना जरूरी होता है। सिर्फ एक जाति का वोट किसी पार्टी को जीत नहीं दिला सकता।

(2) मुद्दों का महत्व: जाति के अलावा, मतदाता चुनाव के दौरान अन्य मुद्दों को भी महत्व देते हैं। ये मुद्दे शिक्षा, रोजगार, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि जैसे ज्वलंत मुद्दे हो सकते हैं। जो पार्टी बेहतर नीतियों और इन मुद्दों के समाधान का वादा करती है, उसे ज़्यादा वोट मिलने की संभावना रहती है।

प्रश्न 13. विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्योरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण दें।

उत्तर– सांप्रदायिक राजनीति वह है, जो धर्म या संप्रदाय के आधार पर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करती है। इसके कई तरीके अपनाए जाते हैं, आइए देखें कुछ उदाहरणों के साथ:

  • बहुसंख्यकवाद: किसी एक धर्म के बहुसंख्यक होने के भाव को राजनीतिक मुद्दा बनाना। उदाहरण: यह दावा करना कि सरकार को सिर्फ बहुसंख्यक धर्म के हितों को साधना चाहिए।
  • अल्पसंख्यक तुष्टीकरण: राजनीतिक दलों द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय को लुभाने के लिए विशेष नीतियां बनाना। उदाहरण: किसी खास धर्म के लिए आरक्षण की मांग करना।
  • धार्मिक ध्रुवीकरण: चुनाव जीतने के लिए अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच भेदभाव को बढ़ावा देना। उदाहरण: किसी धर्म के लोगों पर दूसरे धर्म के लोगों के लिए खतरा पैदा करने का आरोप लगाना।

ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं। सांप्रदायिक राजनीति समाज में तनाव पैदा करती है और राष्ट्रीय एकता को कमजोर करती है।

प्रश्न 14. जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र कर जिसमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव है या वे कमजोर स्थिति में हैं ?

उत्तर– भारत में आज भी कई पहलुओं में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमजोर स्थिति में हैं, जैसे:

  • शिक्षा: लड़कियों को लड़कों के बराबर शिक्षा का अवसर नहीं मिल पाता।
  • रोजगार: समान काम के लिए महिलाओं को पुरुषों से कम वेतन मिलता है।
  • सुरक्षा: महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह हिंसा का शिकार हो सकती हैं।
  • निर्णय शक्ति: महत्वपूर्ण निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी कम होती है।
  • स्वास्थ्य: महिलाओं को पर्याप्त पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पातीं।

इस भेदभाव को दूर करने के लिए शिक्षा, कानून और सामाजिक प्रयासों की ज़रूरत है।

प्रश्न 15. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ?

उत्तर– भारत की विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है. देश भर की सभी विधानसभाओं में महिला सदस्यों का राष्ट्रीय औसत केवल 9% के आसपास है. कुछ राज्यों में स्थिति थोड़ी बेहतर है, जैसे बिहार, राजस्थान और हरियाणा में ये 14% के आसपास है. वहीं, दूसरी ओर, पुद्दुचेरी और नगालैंड जैसी विधानसभाओं में तो अभी भी एक भी महिला सदस्य नहीं है.

यह स्पष्ट है कि भारत की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अभी भी बहुत कम है. इस असमानता को कम करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, जिनमें महिला आरक्षण का मुद्दा भी शामिल है.

प्रश्न 16. किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं
उत्तर-
भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाने वाले दो महत्वपूर्ण प्रावधान हैं:

(1) धर्म की स्वतंत्रता: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 सभी व्यक्तियों को अपनी पसंद के धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार देता है. साथ ही, इसमें किसी भी धर्म को न मानने की स्वतंत्रता भी शामिल है.

(2) राज्य का धर्म निरपेक्षता: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(1) कहता है कि राज्य किसी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा. इसका मतलब है कि सरकार किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देगी और सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करेगी.

ये दो प्रावधान भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाते हैं, जहाँ सभी धर्मों को समान सम्मान दिया जाता है.

प्रश्न 17. जब हम लगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है
(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर।
(ख) समाज द्वारा स्त्रियों और पुरुषों को दी गयी असमान भूमिकाएँ।
(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात।
(घ) लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं को मतदान अधिकार न मिलना।
उत्तर-
(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर।

प्रश्न 18. भारत में यहाँ औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है-
(क) लोकसभा
(ख) विधानसभा
(ग) मंत्रीमण्डल
(घ) पंचायती राज्य संस्थाएँ
उत्तर-
(घ) पंचायती राज्य संस्थाएँ

प्रश्न 19. साम्प्रदायिक राजनीतिक के अर्थ संबंधी निम्न कथनों पर गौर करें। साम्प्रदायिक राजनीति किस पर आधारित है?
(क) एक धर्म दूसरे धर्म से श्रेष्ठ है।
(ख) विभिन्न धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में खुशी-खुशी साथ रहते हैं।
(ग) एक धर्म के अनुयायी एक समुदाय बनाते हैं।
(घ) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम रहने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
उत्तर-
(घ) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम रहने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 20. भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन-सा कथन सही है ?
(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।
(ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बनाता है।
(ग) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है।
(घ) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।
उत्तर-
(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।

प्रश्न 21. ……….पर आधारित विभाजन सिर्फ भारत में है।
उत्तर-
जाति, धर्म और लिंगा

प्रश्न 22. सूची I और सूची II का मेल कराएं

उत्तर-

  1. (ख), 2. (क), 3. (ग), 4. (ग)

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