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Subject | Science |
Chapter | 16. प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन |
Class | Tenth |
Part | Biology |
Category | Bihar Board Class Solutions |
Bihar Board Class 10 Science Chapter 16 Solutions
प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
अनुच्छेद 16.1 पर आधारित
प्रश्न 1) पर्यावरण-मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-से परिवर्तन ला सकते
उत्तर: हम कई तरीकों से और अधिक पर्यावरण-मित्र बन सकते हैं; जैसे-हम तीन ‘R’ जैसी कहावतों पर काम कर सकते हैं, अर्थात् उपयोग कम करना, पुनः चक्रण तथा पुनः उपयोग। इन कहावतों को अपनी आदतों में शामिल करके हम और अधिक पर्यावरण-मित्र बन सकते हैं।
प्रश्न 2) संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य के परियोजना के क्या लाभ हो सकते हैं?
उत्तर: इससे यह लाभ हो सकता है कि बिना किसी उत्तरदायित्व के अधिक-से-अधिक मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 3) यह लाभ, लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं के लाभ से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर: कम-उद्देश्य में परियोजनाओं का एकमात्र लाभ है कि संसाधनों के अधिक-से-अधिक दोहन द्वारा हम अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करते हैं। इन योजनाओं के तहत भावी पीढ़ियों के लिए हमारा . कोई उत्तरदायित्व ध्यान में नहीं होता। दूसरी तरफ, लंबी अवधि की योजनाओं का उद्देश्य संसाधनों का संपोषित विकास के लिए उपयोग करते हुए, आने वाली पीढ़ियों के उपयोग के लिए भी उन्हें सुरक्षित रखना होता है।
प्रश्न 4) क्या आपके विचार में संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन सी ताकतें कार्य कर सकती हैं?
उत्तर: हमारी धरती सभी के लिए उपलब्ध है। सभी प्राणियों का इसके संसाधनों पर समान अधिकार है। यदि कोई व्यक्ति इन संसाधनों का अत्यधिक उपयोग कर रहा है तो इसका सीधा मतलब है कि किसी को इसकी कमी झेलनी पड़ रही होगी। फलतः एक संघर्ष शुरू होता है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। किंतु मुट्ठी भर कुछ अमीर और शक्तिशाली लोग हैं जो संसाधनों का समान वितरण नहीं चाहते। वे इन संसाधनों को अपने लिए लाभ के एक विशाल स्रोत के रूप में देखते हैं।
अनुच्छेद 16.2 पर आधारित
प्रश्न 1) हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
उत्तर: वन जैव विविधता के तप्त स्थल हैं। किसी क्षेत्र की जैव विविधता को जानने का एक तरीका वहाँ पाए जाने वाली प्रजातियों की संख्या है। हालाँकि अनेक प्रकार के जीवों (बैक्टीरिया, कवक, फर्न, फूल वाले पौधे, कीड़े, केंचुआ, पक्षी, सरीसृप आदि) का होना भी महत्त्वपूर्ण है। संरक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य विरासत से प्राप्त जैव विविधताओं की सुरक्षा है। प्रयोगों तथा वस्तुस्थिति के अध्ययन से हमें पता चलता है कि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व भी नष्ट हो सकता है।
प्रश्न 2) संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर: वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो। दूसरे शब्दों में जब पर्यावरण अथवा वन संरक्षित किए जाएँ, तो उनके सुनियोजित उपयोग का लाभ स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए। यह विकेन्द्रीकरण की एक ऐसी व्यवस्था है जिससे आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिक संरक्षण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं।
अनुच्छेद 16.3 पर आधारित
प्रश्न 1) अपने निवास क्षेत्र के आस-पास जल संग्रहण की परंपरागत पद्धति का पता लगाइए।
उत्तर: जल संग्रहण भारत में पुरानी पद्धति है। राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी, महाराष्ट्र में बंधारस एवं ताल, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में बंधिस, बिहार में आहार तथा पाइन, हिमाचल प्रदेश में कुल्ह, जम्मू के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तमिलनाडु में एरिस, केरल में सुरंगम, कर्नाटक में कट्टा आदि प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं। हमारे क्षेत्र, राजस्थान में खादिन, अत्यधिक प्रचलित है।
15वीं सदी में सबसे पहले पश्चिमी राजस्थान में, जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा डिजाइन की गई यह प्रणाली राज्य के कई हिस्सों में आज भी प्रचलन में है। खादिन जिसे ‘ढोरा’ भी कहा जाता है, जमीन पर बहते हुए पानी को कृषि में उपयोग करने के लिए विकसित की गई थी। इसकी प्रमुख विशेषता निचली पहाड़ी की ढलानों के आर-पार पूर्वी छोर पर बनाए जाने वाला लंबा (100-300 मी) बाँध है। इसमें पानी की आधिक्य मात्रा को बाहर निकालने की भी व्यवस्था होती है। खादिन पद्धति खेतों में बहने वाले वर्षा जल के संग्रहण पर आधारित प्रणाली है। बाद में जल तृप्त जमीन का उपयोग विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए किया जाता है।
प्रश्न 2) इस पद्धति की पेय जल व्यवस्था (पर्वतीय क्षेत्रों में, मैदानी क्षेत्र अथवा पठार क्षेत्र) से तुलना कीजिए।
उत्तर: पहाड़ी क्षेत्रों में जल संभर प्रबंधन, मैदानी क्षेत्रों से पूर्ण रूप से भिन्न होता है। जैसे-हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में आज से करीब चार सौ वर्ष पहले, नहर सिंचाई की एक स्थानीय प्रणाली विकसित की गई जिसे कुल्ह कहा जाता था। नदियों में बहने वाले जल को मानव-निर्मित छोटी-छोटी नालियों द्वारा पहाड़ी के नीचे के गाँवों तक पहुँचाया जाता था। इन कुल्हों में बहने वाले पानी का प्रबंधन गाँवों के लोग आपसी सहमति से करते थे।
यह जानना बड़ा रोचक होगा कि कृषि के मौसम में जल सबसे पहले दूरस्थ गाँव को दिया जाता था फिर उत्तरोत्तर ऊँचाई पर स्थित गाँव उस जल का उपयोग करते थे। कुल्ह की देख-रेख एवं प्रबंध के लिए दो-तीन लोग रखे जाते थे, जिन्हें गाँव वाले वेतन देते थे। सिंचाई के अतिरिक्त इस कुल्ह से जल का भूमि में अंत:स्रवण भी होता रहता था जो विभिन्न स्थानों पर झरने को भी जल प्रदान करता रहता था।
प्रश्न 3) अपने क्षेत्र में जल के स्रोत का पता लगाइए। क्या इस स्रोत से प्राप्त जल उस क्षेत्र के सभी निवासियों को उपलब्ध है?
उत्तर: हमारे क्षेत्र में जल के मुख्य स्रोत भूमिगत जल तथा नगर-निगम द्वारा आपूर्ति. जल हैं। कभी-कभी खासकर गर्मी के दिनों में इन स्रोतों से प्राप्त होने वाले जल में कुछ कमी आ जाती है तथा इनकी समान उपलब्धता भी सम्भव नहीं होती |
Bihar Board Class 10 Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1) अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए आप उसमें कौन-कौन से परिवर्तन सुझा सकते हैं?
उत्तर: तीन ‘R’ अर्थात् उपयोग कम करना, पुनः चक्रण तथा पुनः उपयोग को लागू करके हम पर्यावरण को प्रभावी ढंग से सुरक्षित रख सकते हैं। उपयोग कम करने का अर्थ है कम-से-कम वस्तुओं का प्रयोग करना। हम बिजली के पंखे एवं बल्ब का स्विच बंद करके विद्युत का अपव्यय रोक सकते हैं। हम टपकने वाले नल की मरम्मत कराकर जल की बचत कर सकते हैं।
हमें अपने भोजन को फेंकना नहीं चाहिए। पुनः चक्रण का अर्थ है प्लास्टिक, काँच, धातु की वस्तुएँ तथा ऐसे ही पदार्थों के पुनः चक्रण द्वारा दूसरी उपयोगी वस्तुओं के निर्माण में प्रयोग। जब तक आवश्यक न हो हमें इनका नया उत्पाद/संश्लेषण नहीं करना चाहिए। पुन: उपयोग का अर्थ है किसी वस्तु का बार-बार उपयोग करना। उदाहरण के लिए, प्रयुक्त लिफाफों को फेंकने की जगह इनका हम फिर से उपयोग कर सकते हैं।
प्रश्न 2) क्या आप अपने विद्यालय में कुछ परिवर्तन सुझा सकते हैं जिनसे इसे पर्यानुकूलित बनाया जा सके।
उत्तर: हम अपने विद्यालय में तीन ‘R’ को लागू करके इसे पर्यानुकूलित बना सकते हैं।
प्रश्न 3) इस अध्याय में हमने देखा कि जब हम वन एवं वन्य जंतुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। इनमें से किसे वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिए जा सकते हैं? आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर: इन चार दावेदारों; जैसे-वन के अंदर एवं इसके निकट रहने वाले लोगों, सरकार का वन विभाग, उद्योगपति तथा वन्य जीवन एवं प्रकृति-प्रेमी में मेरे विचार से उत्पादों के प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिये जाने के लिए स्थानीय लोग सर्वाधिक उपयुक्त हैं। क्योंकि स्थानीय लोग वन का संपोषित तरीके से उपयोग करते हैं। सदियों से ये स्थानीय लोग इन वनों का उपयोग करते आ रहे हैं साथ ही इन्होंने ऐसी पद्धतियों का भी विकास किया है जिससे संपोषण होता आ रहा है तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए उत्पाद बचे रहेंगे।
इसके अतिरिक्त गड़रियों द्वारा वनों के पारंपरिक उपयोग ने वन के पर्यावरण संतुलन को भी सुनिश्चित किया है। दूसरी तरफ वनों के प्रबंधन से स्थानीय लोगों को दूर रखने का हानिकारक प्रभाव वन की क्षति के रूप में सामने आ सकता है। वास्तव में वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो तथा नियन्त्रित दोहन का फायदा स्थानीय लोगों को प्राप्त हो।
प्रश्न 4) अकेले व्यक्ति के रूप में आप निम्न के प्रबंधन में क्या योगदान दे सकते हैं?
(a) वन एवं वन्य जंतु
(b) जल संसाधन
(c) कोयला एवं पेट्रोलियम
उत्तर:
(a) वन एवं वन्य जंतु स्थानीय लोगों की भागीदारी के बिना वनों का प्रबंधन संभव नहीं है। इसका एक सुंदर उदाहरण अराबारी वन क्षेत्र है जहाँ एक बड़े क्षेत्र में वनों का पुनर्भरण संभव हो सका। अतः मैं लोगों की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करना चाहूँगा। मैं संपोषित तरीके से संसाधन के समान वितरण पर जोर देना चाहूँगा ताकि इसका फायदा सिर्फ मुट्ठी भर अमीर एवं शक्तिशाली लोगों को ही प्राप्त न हो।
(b) जल संसाधन अपने दैनिक जीवन में हम जाने-अनजाने पानी की एक बहुत मात्रा का अपव्यय करते हैं जिसे निश्चित रूप से रोका जाना चाहिए। मैं यह सुनिश्चित करना चाहूँगा कि मुझमें ऐसी आदतों का विकास हो जिसके द्वारा पानी बचाना सम्भव हो सके। इसके अतिरिक्त किसी जल संभर तकनीकी की सहायता से भी जल को संरक्षित किया जा सकता है।
(c) कोयला एवं पेट्रोलियम वर्तमान में ये ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। इन्हें हम कई तरीकों से बचा सकते हैं।
उदाहरण के लिए –
- ट्यूबलाइट का उपयोग करके।
- अनावश्यक बल्ब तथा पंखों का स्विच बंद करके।
- सौर उपकरणों का उपयोग करके।
- वाहनों की जगह पैदल अथवा साइकिल द्वारा छोटी दूरियाँ तय करके।
- यदि हम वाहन का प्रयोग करते हैं, तो जब हम रेड लाइट पर रुकते हैं तो हमें अपने वाहन के इंजन को बंद कर देना चाहिए।
- लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करके।
- वाहनों के टायरों में हवा का उपयुक्त दबाव रखकर।
प्रश्न 5) अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं?
उत्तर: विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत निम्नलिखित तरीकों से कम की जा सकती है –
- अनावश्यक बल्ब तथा पंखे बन्द करके हम बिजली की बचत कर सकते हैं।
- बल्ब की जगह हम ट्यूबलाइट का उपयोग कर सकते हैं।
- लिफ्ट की जगह सीढ़ी का इस्तेमाल करके हम बिजली की बचत कर सकते हैं।
- छोटी दूरियाँ तय करने के लिए हम वाहनों की जगह पैदल अथवा साइकिल का उपयोग करके पेट्रोल की बचत कर सकते हैं।
- जब गाड़ियाँ रेड लाइट पर खड़ी होती हैं तो उनका इंजन बंद करके हम पेट्रोल की बचत कर सकते हैं।
- टपकने वाले नलों की मरम्मत कराकर हम पानी की बचत कर सकते हैं।
- हम भोजन को व्यर्थ में न फेंककर, भोजन की बचत कर सकते हैं।
प्रश्न 6) निम्न से संबंधित ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो आपने पिछले एक सप्ताह में किए हैं –
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है।
उत्तर:
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण –
- अनावश्यक पंखे एवं बल्ब को बंद करके हमने बिजली बचाई।
- वाहन की जगह पैदल चलकर हमने पेट्रोल बचाया।
- हमने टपकने वाले नल की मरम्मत कराकर पानी बचाया।
- हमने लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल कर बिजली बचाई।
- हमने चटनियों की खाली बोतल का उपयोग मसाले रखने के लिए किया।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है –
- दाढ़ी बनाते समय हमने पानी का अपव्यय किया है।
- मैं सो गया किंतु टेलीविजन चलता रहा।
- कमरे को गर्म रखने के लिए बिजली उपकरणों का उपयोग किया।
- ट्यूबलाइट की जगह बल्ब का उपयोग किया।
- अपना भोजन फेंका।
प्रश्न 7) इस अध्याय में उठाई गई समस्याओं के आधार पर आप अपनी जीवन-शैली में क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके?
उत्तर: हम अपनी जीवन शैली में तीन ‘R’ की संकल्पना को लागू करना चाहेंगे। ये तीन ‘R’ हैं-कम करना, पुनः चक्रण, पुनः उपयोग। ये संसाधनों के संपोषित उपयोग में हमारी मदद करते हैं।
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